मेहरानगढ़ दुर्ग से 4 बजे वापिस आ गए रात 11:45 की ट्रेन जोधपुर जैसलमेर एक्सप्रेस से हमे जैसलमेर जाना है। इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें
खाना पीना खा कर हम 10:30 बजे ही जोधपुर स्टेशन पहुँच गए। और ट्रेन का इन्तजार करने लगे लगभग 11 बजे ट्रैन प्लेटफार्म पर आयी। हम जर्नल में बैठ गए कुछ ज्यादा भीड़ नहीं थी सीट आसानी से मिल गयी। लेकिन हम सीट पर नहीं बैठे ऊपर की सीट पर जाकर लेट गए। ठीक समय पर ट्रेन चली। और बाहर का नज़ारा तो कुछ दिख नहीं रहा था इसलिये थोड़ी देर बाद ही नींद आ गई। लगभग सुबह 3:45 पर आँख खुली तो पोखरण रेलवे स्टेशन पर ट्रेन खड़ी थी अभी जैसलमेर दूर है तो मैं फिर सो गया। अब आंख खुली सुबह 5:00 बजे ट्रैन लगभग खाली हो चुकी थी। तो हम नीचे आकर सीट पर बैठ गए पास बैठे एक सहयात्री से पता किया श्री भादरिया लाठी स्टेशन निकल गया अगला स्टेशन जैसलमेर है। जैसलमेर राज्य भारत के पश्चिम भाग में स्थित थार के रेगिस्तान के दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र में फैला हुआ था। मानचित्र में जैसलमेर राज्य की स्थिति 20001 से 20002 उत्तरी अक्षांश व 69029 से 72020 पूर्व देशांतर है। परंतु इतिहास के घटनाक्रम के अनुसार उसकी सीमाएँ सदैव घटती बढ़ती रहती थी। जिसके अनुसार राज्य का क्षेत्रफल भी कभी कम या ज्यादा होता रहता था। जैसलमेर का क्षेत्र थार के रेगिस्तान में स्थित है। यहाँ दूर-दूर तक स्थाई व अस्थाई रेत के ऊंचे-ऊंचे टीले हैं, जो कि हवा, आंधियों के साथ-साथ अपना स्थान भी बदलते रहते हैं। इन्हीं रेतीले टीलों के मध्य कहीं-कहीं पर पथरीले पठार व पहाड़ियाँ भी स्थित हैं। इस संपूर्ण इलाके का ढाल सिंध नदी व कच्छ के रण अर्थात् पश्चिम-दक्षिण की ओर है। पश्चिमी राजस्थान में सोने की सी चमक लिए स्वर्ण नगरी जैसलमेर देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। अपनी सोने जैसी आभा के कारण लोगों को अपनी ओर खींचने वाली इस नगरी में घुमक्कड़ लोगों के घूमने के लिए कई स्थान है। खैर यहाँ जैसलमेर में अपने काफी परिचित लोग रहते है तो मैंने अपने मित्र पवन विश्नोई जी को जोधपुर में ही फोन कर दिया था के कल सुबह हम जैसलमेर आएंगे वो हमें लेने आ जाएं और हमारी आज रात ठहरने की व्यवस्था कर दें। वह विश्व हिंदू परिषद के जैसलमेर जिला मंत्री है उनका यह कहना था कि उन्होंने हमारी सारी व्यवस्था संघ कार्यालय में कर दी। रेलवे स्टेशन ट्रेन से बाहर का नज़ारा बड़ा मनमोहक है दोनों तरफ रेत के टीलों के बीच में से ट्रेन निकलती है और हल्की ठंडी हवा बड़ा ही अच्छा लग रहा है। थोड़ी देर बाद लगभग 6:15 पर जैसलमेर जंक्शन आया। तो पवन जी को फिर फोन किया वो गाडी लेकर स्टेशन स्टेट बैंक में ATM के पास खड़े थे हम चारों उनके पास पहुँच गए। वह हमें संघ कार्यालय ले आये जो उमा मार्ग गांधी कॉलोनी में है वहां पहुंचकर हम नित्य कर्म से निर्वित हुए इसके बाद पवन जी नेहमारे बढ़िया नाश्ते की व्यवस्था की एक दम बढ़िया जैसलमेरी छोले भटूरे खा के मज़ा आ गया।
जैसलमेर की गलियों में मैं |
संघ कार्यालय के बाहर मैं |
मैं राजेश और जैसलमेर में रहने वाला सैब्बी |
फिर लगभग 9 बजे हमने एक टैक्सी वाला बुलवाया उसने हमें 1200 रु में कई सारी जगह ले जाने का बताया तो पवन जी ने 1000 रु करवा दिए। टैक्सी वाला हमे आज ले जाने वाला है सबसे पहले गढी सर तालाब फिर पटवा हवेली, सालम सिंह हवेली, लौद्रवा जैन मंदिर फिर कुलधरा गांव और उसके बाद सम "सैनड्यून" वहां कई रिसोर्ट है और उनमें राजस्थानी लोक नृत्य फोक डांस का बेहद सुन्दर आयोजन होता है और उसके बाद राजस्थानी खाना भी होता है। कार्यालय से लगभग हम 10 बजे निकले और सबसे पहले हम पहुंचे गढीसर तालाब। यह वह जगह है जिसके नाम के आगे बदनाम लगा हुआ है। वैसे वास्तव में यह जगह अपने-आप में खासा ऐतिहासिक महत्त्व रखती है। जहां राजस्थान के कई ऐतिहासिक स्थान विभिन्न राजघरानों के कारण बेहद प्रसिद्ध हुए हैं, वहीं जैसलमेर की यह झील यहां का एकमात्र ऐसा स्थान है जो एक वेश्या के कारण प्रसिद्ध हुई है। सन् 1909 में निर्मित कराए गए इस प्रवेश द्वार को लोग 'वेश्या के द्वार' के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं कि स्वर्ण नगरी जैसलमेर में जिस समय महारावल (राजा) सैलन सिंह की सत्ता थी, उसी समय वहां तेलन नाम की एक वेश्या भी रहा करती थी। पूरे राज्य में उसकी खूबसूरती का कोई सानी नहीं था। तेलन जितनी रूपवती थी, उतनी धन-दौलत से संपन्न थी, लेकिन उसने अपने धन का दुरुपयोग न करके उसे हमेशा धार्मिक कार्यों और समाज की भलाई में लगाया। तेलन जब जैसलमेर का ऐतिहासिक गढ़ीसर तालाब का प्रवेश द्वार बनवा रही थी, तब पूरे नगर में चर्चा होने लगी कि महारावल के होते हुए एक वेश्या प्रवेश द्वार क्यों बनवाये।
नगरवासी अपनी अर्जी लेकर महारावल के पास पहुंचे और अपना दर्द बयां किया। नगरवासियों से महारावल के समक्ष अपनी बात रखते हुए कहा कि गढ़ीसर तालाब पर एक वेश्या प्रवेश द्वार बनवा रही है। चूंकि पूरे नगर में जल आपूर्ति का प्रमुख साधन गढ़ीसर तालाब ही है और अब नगरवासी एक बदनाम औरत द्वारा बनवाये गए प्रवेश द्वार से जाकर पानी लेकर आयेंगे, जो सही नहीं है। महारावल ने नगरवासियों की समस्या को सुना और अपने मंत्री और सलाहकारों के साथ इस बात पर विचार-विमर्श करने के बाद आदेश जारी किया कि वेश्या द्वारा बनवाये जा रहे प्रवेश द्वार को तत्काल गिरा दिया जाए।
जब तेलन को इस बात की जानकारी मिली कि नगरवासियों से उसके खिलाफ महारावल से शिकायत की है और राजा ने उसके द्वारा बनवाए जा रहे प्रवेश द्वार को गिराने के आदेश जारी किये हैं, उस समय द्वार निर्माण का कार्य अंतिम चरण में था। अतः उसने प्रवेश द्वार पर भगवान विष्णु का एक मंदिर बनवा दिया। जब महारावल के सेवक द्वार गिराने वहां पहुंचे, तो द्वार के ऊपर भगवान विष्णु का मंदिर पाया। चूंकि भगवान विष्णु हिंदुओं के आराध्य देव हैं और मंदिर को गिराना हिंदुओं की आस्था का अपमान है, अतः सेवकों ने प्रवेश द्वार को हाथ भी नहीं लगाया और तेलन का निर्माण कार्य जैसलमेर के इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गया।
गढ़ीसर तालाब के गेट के बाहर राजेश मैं और जैसलमेर में रहने वाला पियूष |
गढ़ीसर तालाब |
समाज बुरा माने लेकिन किया उसने महान काम उसी का परिणाम है यह गढ़ीसर तालाब |
इस जगह के दर्शन करके मन में कई प्रश्नों के पहाड़ खड़े हो गये। आखिर क्या फरक पड़ता है व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से बुरा है लेकिन सामाजिक दृष्टि से वह काम तो अच्छा कर रहा है। यह उथल पथल मन में चलती रही। खैर हमारा आगे ऊपर लिखी जगह पर क्रमसः जाना हुआ उसका संस्मरण
अगले भाग में जारी...
अगले भाग में जारी...
बढ़िया पोस्ट....पर फोटो बहुत छोटे है इन्हें 640x 480 पर कीजिये
ReplyDeleteधन्यवाद रितेश जी मैं करता हूँ जी।
Deleteजानकारी साझा करने लिए आपका आभार हमारे तो नजदीक होते हुए भी हमें यह बात पता नहीं थी
ReplyDeleteधन्यवाद जी शैतान सिंह जी साहब घुमक्कड़ घूमने के साथ जगह की पूरी जानकारी भी लेता है।
Deleteपोस्ट का शीर्षक मुझे गलत लगा। जैसलमेर मे ऐसी कोई बदनाम गली नहीं है। तेलन वेश्या ने तालाब बनवाने का महान पूण्य का कार्य किया, उनका यह कार्य वंदनीय है।
ReplyDeleteमैंने उसका इतिहास बताया था जी जैसा उसको पहले समझा जाता था। यह बात मुझे भी मालूम है के तेलन वैश्या का कार्य वंदनीय है। ये मैंने सबसे नीचे अपने शब्दों में भी लिखा है।
Deleteपोस्ट का शीर्षक मुझे गलत लगा। जैसलमेर मे ऐसी कोई बदनाम गली नहीं है। तेलन वेश्या ने तालाब बनवाने का महान पूण्य का कार्य किया, उनका यह कार्य वंदनीय है।
ReplyDeleteललित सर की बात सही है ये जगह गलत कैसे हुई । हलाकि उस काल में और आज भी वेश्या को गलत ही समझते है । शायद इसलिए ये जगह पहले बदनाम होगी ।
ReplyDeleteजैसलमेर जब हम जा रहे थे तो ट्रेन में रेत उड़ उड़ कर आ रही थी जिसके कारण सारा डब्बा रेत का भण्डार बन गया था।
हमे रेत ट्रैन में आने का अनुभव तो नहीं मिला जी और मैंने इस पोस्ट के माध्यम से इस जगह का पहले का इतिहास बताने की ही कोशिश की है के लोग उसको पहले क्या समझते थे। बाकी तेलन का यह कार्य पूजनीय है।
Deletekya baat hai bhai sahab ! mauj toh aap hi le rehe ho........
ReplyDeleteकभी आप भी साथ चलना और आप भी मौज ले लेना जी।
Deleteअगले वर्ष की शुरुआत में जैसलमेर का टूर फिक्स है। एक मित्र है वही कैंपिंग और टेंट लगाते है। काफी विदेशी पर्यटक आते है उनके पास 1
Deleteवाह ये तो बहुत अच्छी बात है अगली बार आपके साथ गए तो उनसे भी जरूर मिलकर आएंगे।
ReplyDeleteबहुत खूब हितेश भाई यादें ताजा हो गयीं पर आपने कुल्धरा ओर रेगिस्तान की यात्रा का जिक्र नहीँ किया.
ReplyDeleteअगले भाग में मिलेंगी राजेश भाई। और बहुत दिन हो गए कही साथ भी गए हुए।
Deleteआप बढ़िया लिख रहे हैं लेकिन अगर अपने लेख को छोटे छोटे पैराग्राफ में लिखें तो वह ज्यादा असरदार बनेगा
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deletevery well written, thanks for refreshing the memories.
ReplyDeleteहूँ तो यहाँ जाने केइये पूरा समय निकलना पड़ेगा।
ReplyDeleteबिल्कुल जी समय तो पूरा ही निकालना पड़ेगा।
Deleteउस गणिका का नाम तेलन नहीं टीलो है।
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