शाम के 5 बज रहे थे 20 जून 2015 का दिन था कश्मीर जाने का मन था सोचा किसी दोस्त को भी साथ ले चलूं।
तभी अंकित को फ़ोन किया और कहा कश्मीर चलेगा क्या..?? बोला यार मेरा भी कई दिन से मन कर रहा है चलते है और दो दोस्तों को भी लेजा सकते है क्या..?? मैंने कहा ठीक है कल मिलते है और फ़ोन काट दिया।
जब अंकित को कल मिला और उसको बताया आजकल अमरनाथ यात्रा चल रही है, 28 जून को मेरा एक दोस्त ट्रक लेकर जायेगा उसी में चलेंगे।
अंकित के मन में प्रश्नो का पहाड़ खड़ा हो गया, बोला तू पागल हो गया क्या, बहुत थक जायेंगे, यार सोना भी नहीं हो पायेगा।
मैंने बस उसे इतना कहा मज़ा आएगा ट्रक में, एक नया अनुभव मिलेगा। वो जाने के लिये तैयार हो गया और उसने अपने दोस्त प्रमोद को फ़ोन किया वह भी जाने के लिये तैयार हो गया, मैंने भी अपने दोस्त कपिल को फोन किया वह भी तैयार हो गया उसने मुझे पहले से ही कह रखा था अगर कही जाने का प्रोग्राम बने तो मुझे जरूर ले चले।
हमने आपस में बात करी 28 जून को सभी गौकुलपुरी चौक मिलेंगे।
यह दिन बड़ी कठिनाई से बीत रहे थे, बार बार मन यही सोच रहा था के कितना रोमांचकारी सफ़र होगा, आखिर मुझे ऐसे सफ़र करने में आंनद भी तो बहुत आता है।
इन प्रश्नो के साथ 7 दिन बीत गए। हम सभी सुबह 8 बजे 28 जून को गोकुलपुरी चौक मिले वहां से मेरे दोस्त के घर गये, जो ट्रक लेके जा रहा था। वहां हमने खाना खाया और चल पड़े 12 बजे।
बहुत धुप थी, पसीने तो पानी की तरह बह रहे थे। लेकिन मन में अलग ही मज़ा था, कुछ अलग ही उत्साह था ऊंचाइयों को छूने का ट्रक वाले को आज का सफ़र सिर्फ जालंधर तक ही तय करना था। थोड़ी देर बातें करने के बाद सब चुप हो गये, शायद सफ़र पसंद नहीं आ रहा था। ऐसा हो भी सकता है क्योंकि इतनी गर्मी और ऊपर से ट्रक में। लेकिन 4:30 बजे अम्बाला पहुंचे तो ट्रक वाले ने वहां ट्रक रोका वहां हमने ढाबे पर चाय नाश्ता किया फिर चल पड़े अब सीधे जालंधर जाके रुके रात के 10 बज रहे थे और भूख भी तो काफी तेज़ लग रही थी।
वहां फिर भोजन किया और ट्रक के सामने सड़क पर चादर बिछा कर सो गए मज़े से। थकावट इतनी थी में नींद में पता ही नही चला कब सुबह के चार बज गए।
जालंधर शहर |
इस दिन का सफ़र शुरू हुआ सुबह 5 बजे से करीब 3 घंटे बाद 8 बजे हम पठानकोट पहुंच गए। पठानकोट पहुँचते ही पहाड़ियां दिखने लगी। मौसम भी बहुत सुहाना हो गया था। बहुत देर से चुप रहा अंकित अब बोला यार मज़ा आ रहा है, कसम से क्या ज़िन्दगी है..!! मैं उससे यही सुनना चाहता था। खुले आसमान के नीचे ट्रक की खुली छत ऐसा लग रहा था मानो ट्रक हवा में उड़ रहा हो।
करीब 1 बजे तक हम 'जम्मू' पहुँच गए। आसमान में काले बादलों से घनघोर अँधेरा दिन में ही छा गया, बिजली कड़कने लगी, देखते ही देखते झम-झम कर बारिश शुरू हो गई। ऐसे में ट्रक की रफ़्तार धीमी हो गई थी बारिश इतनी तेज़ थी के थोड़ी देर के लिए जम्मू श्रीनगर राजमार्ग बंद कर दिया था।
जम्मू श्रीनगर राजमार्ग बंद किया |
शाम करीब 3:30 बजे बारिश रुकी हम उधमपुर पहुँच गये। धीरे धीरे आसमान हमारे करीब आता जा रहा था, लेकिन आज का सफ़र ट्रक वाले को सिर्फ रामबन तक ही तय करना था। शाम करीब 5:30 बजे हम कुद पहुंचे वहां राजमार्ग पर कुद की मश्हूर 'सोन पापड़ी' (पतीसा) मिलता है थोड़ी देर रुककर उसका स्वाद लिया फिर चल पड़े आगे आसमान की आघोष में शाम 7 बजे तक पटनीटॉप पहुंचे, वहां लंगर में प्रसाद रूपी भोजन किया।
फिर 1 घंटे में हमने पटनीटॉप के मनमोहक पहाड़ियों को अपनी आँखों और कैमरे में कैद कर लिया। मन नहीं कर रहा था वहां से चलने का, ऐसा लग रहा था जैसे वहां कुछ छूट रहा हो पर अभी तो आसमान के और करीब जाना है।
पटनीटॉप पर मैं मैं अंकित प्रमोद और कपिल |
पटनीटॉप का एक मनमोहक दृश्य |
अब बहुत थक चुके थे बस यही सोच रहे थे कब आयेगा रामबन, रात हो चुकी थी कुछ दिख भी नहीं रहा था। करीब 10 बजे तक हम रामबन पहुँच गए। हमारे दूसरे दिन की यात्रा पूरी हो गई। वहां देखा तो आर्मी गस्त लगा रही थी आखिर हमारी सुरक्षा का जिम्मा उनके पास है। मैं तो बिना कुछ खाये ही सो गया।
सुबह उठे नहाये धोये, मंदिर में दर्शन किये, लंगर में प्रसाद रूपी नाश्ता किया फिर चल पड़ा हमारा कारवां आसमान की ओर।
रामबन में मैं और प्रमोद |
रामबन में मैं |
धीरे धीरे हवा में ठंडक बढ़ रही थी धीरे धीरे स्वेटर की जरुरत पड़ने लगी महज डेढ़ घंटे में ट्रक वाला अपने गंतव्य स्थान पर पहुँच गया। लेकिन हमे तो अभी ओर चलना है। मुसाफिर तो बस चलता रहता है, आगे बढ़ता रहता है। ट्रक वाले ने हमे शैतानी नाला छोड़ दिया वहां से हमने सबको राम राम कहके विदाई ली। अब हमे बनिहाल रेलवे स्टेशन जाना है। वहां से करीब 7-8 किलोमीटर नीचे है, आधे घंटे तक कोई गाडी नहीं मिली। फिर मन में किसी से मदद मांगने की सूझी तो हमारी नज़र वहां दौरे पर आये वहां के DC मोहम्द ऐजाज पर पड़ी और उनके पास जाके कहने लगे सर हमें श्रीनगर जाना है ट्रेन से। तो उन्होंने कहा क्यों जाना है श्रीनगर.?? क्या करोगे वहां जाके.?? मैंने कहा वहां मेरे अंकल रहते है उनके घर जायेंगे फिर वहां से घूमने निकलेंगे, अमरनाथ यात्रा पर भी जाना है। उन्होंने फिर कहा क्या नाम हा तुम्हारे अंकल का.?? मैंने कहा गुलाम रसूल खांडे तो वह अचम्भित रह गए जैसे उन्हें जानते हो, कहने लगे उनका कोई फ़ोटो है..?? मैंने दिखा दी अंकल की फ़ोटो। फिर पता चला वह अंकल के दोस्त है।
तो उन्होंने पुलिस की जीप से बनिहाल रेलवे स्टेशन छुड़वाया, मन की खुशी दुगनी हो गई। अंकल श्रीनगर रहते है पर उन्हें लोग इतनी दूर भी जानते है। अंकल कोई नेता नहीं है पर वह एक बड़े व्यवसायी है भवन निर्माण के। अगर वह अंकल को नही जानते होते तो हमे काफी देर हो जाती शायद ट्रेन निकल जाती।
हम स्टेशन पर 2:30 बजे पहुँच गए। एक ट्रेन निकल गई थी। अगली ट्रेन 5 बजकर 10 मिनट पर है, तो हम टिकट लेने खिड़की पर गए तो टिकट देने से मना कर दिया, कहा ट्रेन से 1 घंटे पहले मिलती है यहाँ टिकट। तो फिर हम स्टेशन की खूबसूरती निहारने लगे, गंदगी का कोई नामोनिशान नहीं था, एक दम बढ़िया व्यवस्था स्टेशन भी कोई पर्यटक स्थल से कम नहीं है। पता ही नहीं लगा कब 4:30 बज गए हमने भाग कर जल्दी सी टिकट ली। अरे वाह क्या बात है श्रीनगर लगभघ 80 किलोमीटर दूर है और टिकट सिर्फ 20 रु का, हैरान हो गए फिर सोचा ट्रेन बेकार होगी देर से पहुंचाएगी पर ठीक समय पर ट्रेन आई ऐसा लगा जैसे शताब्दी एक्सप्रेस में बैठे हो, एकदम बढ़िया सीट मज़ा आ गया।
बनिहाल रेलवे स्टेशन |
पूरे स्टेशन का दृश्य |
यही वह ट्रेन है जो हमे श्रीनगर लेके जायेगी |
अब आपको थोडा कश्मीर रेलवे के बारे में बताते है। कश्मीर रेलवे भारत में निर्मित की गई रेलवे लाइन है, जो देश के बाकी के हिस्से को जम्मू कश्मीर राज्य के साथ मिलाती है। यह लाइन जम्मू से शरू होकर 345 किलोमीटर दूर कश्मीर घाटी के पश्चिमोत्तर किनारे बारामूला शहर में पूरी होती है। पर अभी जम्मू से बनिहाल के बीच काम चल रहा है। जो काफी हद तक पूरा हो चूका है। लेकिन अभी ट्रेन बनिहाल से बारामूला के लिए प्रचलन में है। अनुमान से लगभघ 2 साल बाद सीधे जम्मू से चलने लगेगी।
इस परियोजना की लगत 60 अरब रूपए है हम थोडा ही आगे बढे थे की पीर पंजाल रेल सुरंग आ गई इसे (बनिहाल काजीगुंड) रेल सुरंग भी कहते है। यह सुरंग भारत की सबसे लंबी सुरंग है। इस सुरंग का निर्माण समुद्र सतह से 5770 फ़ीट (1760 मी.) की औसत ऊंचाई पर और वर्तमान सड़क मार्ग की सुरंग से 1440 फ़ीट तथा 440 मी. नीचे हुआ है। इस रेल की कड़ी के तैयार हो जाने से यातायात में काफी सुविधा हो गई है, विशेषकर सर्दी के मौसम में जब भीषण ठण्ड और हिमपात के कारण जम्मू श्रीनगर राजमार्ग की सुरंग कई बार बंद करनी पड जाती है पर यह रेल मार्ग खुला रहता है।
पीरपंजाल (बनिहाल काजीगुंड) सुरंग |
सुरंग में इतना मज़ा आया के पता ही नहीं लगा कब चार स्टेशन निकल गए और अनंतनाग आ गया। वास्तव में अनंतनाग आया नही था ट्रेन अनंतनाग पहुंची थी। हरियाली दृश्य खेती पहाड़ के बीच से निकल कर ट्रेन आगे बढ़ रही थी। काकापुर पार करते ही झेलम पुल पर पहुँच गई। नीचे झेलम नदी बह रही ही। उसके बाद तो पता ही नहीं लगा हम कब श्रीनगर पहुँच गए करीब 7 बज रहे थे
श्रीनगर रेलवे स्टेशन पर मैं |
श्रीनगर रेलवे स्टेशन पर कपिल और अंकित |
अंकल ने हमे लेने अपने ड्राईवर को स्टेशन भेजा था हम उनके साथ अंकल में घर चले गए काफी थके हुए थे खाना खा के सो गए।
अभी और आगे आसमान की आघोष में जाना है।
Good journey.... :)
ReplyDeleteThanks Abdul Ahad aapne ki hai koi aisi journey
Deleteबहुत बढिया, मालवाहक से घुमक्कड़ी का मजा ही र है।
ReplyDeleteजी बिलकुल घुमक्कडी का मज़ा ही कुछ और है धन्यवाद
Deleteशर्मा जी गोकलपुरी के पास कहाँ रहते हो।
ReplyDeleteमैं तो वेलकम रहता हूँ जी गोकलपुरी तो वह दोस्त रहते है जो ट्रक लेके गए थे।
DeleteVery well Hitesh !your writing skills are amazing !keep it up ...
ReplyDeleteVery well Hitesh !your writing skills are amazing !keep it up ...
ReplyDeleteVery well Hitesh !your writing skills are amazing !keep it up ...
ReplyDeleteThanks dear Behna
DeleteAgli baar mujhe bhi bula lena
ReplyDeleteBilkul swagat hai
Deletetruck ka mazaa he kuch aur hai, maine kayi baar safar kiya hai. boht badiya!!
ReplyDeleteधन्यवाद जी
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