जिनके खून में घुमक्कड़ी होती है उनको न समय की चिंता होती है न ही पैसों की परवाह। चाहे मौसम अनुकूल हो या प्रतिकूल उन्हें इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। वो तो बस एक आज़ाद पंछी की तरह नील गगन में ऊंचाइयों के शिखर पर उड़ता ही जाता है। ऐसी ही 9 फरवरी 2015 को मेरे मन में विचार आया इस बार राजस्थान की तरफ जाना चाहिए.!! तभी गौरव को फ़ोन किया मैंने कहा भाई इस बार राजस्थान जाना है बता कहाँ चले वो छूटते ही बोला जोधपुर चलते है फिर वहां से जैसलमेर चलेंगे। मैंने कहा ठीक है और दो दोस्त ओम और राजेश को फोन किया दोनों जाने के लिए तैयार हो गए। अब हम चार लोग है जाने के लिये 12 फरवरी 2015 को मंडोर एक्सप्रेस से जाने का आरक्षण करवा लिया। वैसे तो घुमक्कड़ को कोई फर्क नहीं पड़ता के आरक्षण हो या सामान्य लेकिन बस थोड़ा भीड़-भाड़ से बचना चाहता था और राजेश को जर्नल में जाने का बिलकुल भी अनुभव नहीं है। दो दिन बीत गए 12 फरवरी आयी मंडोर एक्सप्रेस रात में 9:15 पर चलती है तो पहले ही सबको कह दिया था के समय से पहुंच जाना भई आरक्षण था तो इसलिए ढूंढने में भी कोई दिक्कत नहीं हुई मैं सबसे पहले अपने डिब्बे के पास पहुंचा फिर गौरव आया ओम और राजेश साथ आ रहे थे। चरों मिल गए सीट पर बैठे ट्रैन सही पर चलने लगी अभी दिल्ली केंट पहुंचे थे के पेट में चूहे कूदने लगे सभी अपने अपने घर से खाना बनवा कर लाये थे तो सबने अपना अपना खाना खोल लिया और टूट पड़े। फिर सभी ने अपनी अपनी बर्थ खोल ली और सो गए। मुझे सफर में अक्सर नींद कम आती है लेकिन जब अलवर आया तो मैं भी सो गया करीब 12:30 बज रहे होंगे। फिर कंज खुली ठीक 3 बजे देखा तो ट्रेन रुकी हुई थी बहार देखा जयपुर जंक्शन पर ट्रेन खड़ी थी। जयपुर से चलते ही मैं फिर सो गया। अब सीधे 6 बजे आंख खुली ट्रेन थोड़ी लेट चल रही थी करीब 6:15 बजे मेडता जंक्शन आया। बाहर का नज़ारा बहुत शानदार है। हलके हलके सुरमई बादल, ठंडी हवा, सूरज की पिली किरणें, पीला प्रकाश पर कहीं ताप झलकता नहीं। पुरे राजस्थान में फैली 480 कि॰मी॰ लम्बी अरावली पर्वत श्रृंखला प्राकृतिक दृष्टि से राज्य को दो भागों में विभाजित करती है। वैसे तो राजस्थान में काफी ज्यादा गर्मी रहती है लेकिन हम गए भी ऐसे मौसम में थे जब गर्मी नहीं थी थोड़ी देर बाद लगभग 8:10 पर जोधपुर जंक्शन आया। वर्ष प्रयत्न चमकने वाले सूर्य, मौसम के कारण इसे "सूर्य नगरी भी कहा जाता है। यहाँ स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग को घेरे हज़ारों नीले मकानों के कारण इसे "नीली नगरी" नाम से भी जाना जाता है।
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जोधपुर रेलवे स्टेशन के बाहर मैं |
बहार निकलते हुए टिकेट चेकर को मोबाइल में टिकट का msg दिखाया और रेलवे स्टेशन के बाहर से ऑटो किया और सीधे नयी सड़क गैलेक्सी होटल पहुँच गए। यह होटल अपने एक मित्र का है तो इसलिए रुकने की व्यवस्था फ्री हो गई थोड़ी देर आराम किया लगभग 11 बजे तक फिर वहीँ अपने एक मित्र वीरेन्द्र जी को बुलवा लिया वह सूरसागर रहते है। उन्ही के साथ बाहर भोजन किया और आज का दिन तो पूरा वहां के कुछ मित्रों से मिलने-जुलने और आराम करने में लगा दिया। आज आखा तीज है और यहाँ जोधपुर में तीज का त्यौहार मुख्य रूप से महिलायों को समर्पित है इस दिन यहाँ इस दिन महिलाएं आधी रात को अपने अपने घरों से बाहर निकलती है झुण्ड बनाकर जैसे मेले में जा रही हो और उनके सामने जो भी भाई (पुरुष) आता है उसके छड़ी मरती है। ऐसी मान्यता है कि जिसके छड़ी लगती है उसकी शादी जल्दी हो जाती है। मेरे भी छड़ी लगी काफी तेज लग गई घाव भी हो गया खून निकलने लगा और दर्द भी काफी तेज होने लगा लेकिन इसके लिए किसी को शिकायत नहीं की जा सकती थी यह यहाँ की परंपरा है। लेकिन यह कार्यक्रम देखकर बहुत अच्छा लगा पहली बार ऐसा त्यौहार देखा एक अलग ही विरासत है राजस्थान की ऐसी विरासत है के सबका मन मोह ले।
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तीज माई |
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मेरे हाथ में लगी छड़ी |
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ऐसे जगह जगह लगे मेले जहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते है |
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रात में जगमगाता शहर जोधपुर |
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मैं और राजेश |
अगलेदिन सुबह मेहरानगढ़ फोर्ट के लिए निकल गए। मेहरानगढ किला राजस्थान प्रांत में जोधपुर शहर में स्थित है। पन्द्रहवी शताब्दी का यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, मैदान से 125 मीटर ऊँचाई पर स्थित है और आठ द्वारों व अनगिनत बुर्जों से युक्त दस किलोमीटर लंबी ऊँची दीवार से घिरा है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं। यह किला भारत के प्राचीनतम किलों में से एक है और भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की 24 संतानों मे से एक थे। वे जोधपुर के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है। उन्होने अपने तत्कालीन किले से 1 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार प्रस्तुत किया। इस पहाड़ी को भोर चिडिया के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वहाँ काफ़ी पक्षी रहते थे। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है।राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है। राव जोधा ने 1460 मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि अधिसंख्य जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
अलग ही महसूस हो रहा था यहाँ की नक्काशी देख कर बिलकुल मज़ेदार नक्काशी ऐसी जो शायद अब कोई नहीं कर पाए। मज़ा आ गया देखकर और गर्व महसूस हुआ भारत में ऐसी ऐसी जगह है जिनका कोई जवाब नहीं।
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मेहरानगढ़ दुर्ग बायें से गौरव, मैं और ओम |
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मैं और ओम |
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गांव के लोगो के साथ मैं और ऊपर कई तोप रखी है |
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वाह कलाकृतियों का कोई जवाव नहीं |
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गज़ब की नक्काशी है |
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वाह मज़ा आ गया |
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कुछ पुराने हथियार रखे है दुर्ग में |
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एक सुरंग भी है |
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दिल खुश हो गया देख कर |
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दुर्ग से नीचे देखो तो सारे नीले नीले घर जिस कारण से जोधपुर को Blue City कहा जाता है |
फिर दुर्ग से वापिस गैलेक्सी होटल आने में हमे लगभग 4 बज गए रात को जैसलमेर के लिये निकलेंगे। जोधपुर की अन्य विरासत जैसे उमेद भवन, जसवंत ठाडा, बालसमंद लेक आदि अगली बार घूमेंगे।
Wonderful details of jodhpur.thanks
ReplyDeleteThanks Sunita ji
Deleteलिख तो बढिया रहे हो, अमरनाथ यात्रा को पूर्ण करो। ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। आशा है कि अंतरजाल पर हिन्दी को समृद्ध करने का महत्वपूर्ण कार्य होगा।
ReplyDeleteधन्यवाद मित्र ललित जी अमरनाथ यात्रा जल्द ही पूरी होगी तथा मेरा भी यही प्रयास है हिंदी की लेखनी को इतना समृद्ध कर दिया के समस्त विश्व के लिए हिंदी अनिवार्य हो जाये।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हितेश भाई। एक त्रुटि है आपने सन 1460 की जगह 2460 कर दिया। सुधार कीजिये ☺
ReplyDeleteधन्यवाद जी ठीक कर दिया है मैंने।
Deleteबहुत अच्छा लगा पढकर , मै अभी तक नीरज जाट के ब्लॉग ही पढता था, वो भी धुम्मकड हैं google search मे नीरज जाट लिखना उसका ब्लॉग आयेगा फिर पढना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत धन्यवाद और नीरज जी के ब्लॉग मैं भी पढता हूँ वह बहुत अच्छा लिखते है और यहाँ वो मेरे पास ही रहते है।
DeleteShandar lekhan Jodhpur ke baare Mai jitna likha jaye kum hai per acha likha hai
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteबढ़िया संस्मरण
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteबहुत बढ़िया हितेश भाई आपका स्वागत है ब्लॉग जगत में
ReplyDeleteधन्यवाद जी
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