लौद्रवा जैन मंदिर एक अलौकिक विरासत

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आज रात हमे 25013 कॉर्बेट पार्क लिंक एक्सप्रेस से दिल्ली जाना है। यह ट्रेन रात लगभग 12:45 बजे जैसलमेर से निकलती है। हम अभी जैसलमेर दुर्ग से निकले ही थे कि राजेश बोला हितेश भाई मेरा तो यहां एक दिन और रुकने का मन कर रहा है, मुझे दिल्ली में जरुरी काम था तो दोनों की सहमति नहीं बनी इसी वजह से हम तनोट माता के मंदिर के दर्शन नहीं कर पाएंगे, खैर कोई बात नहीं जैसलमेर घुमक्कड़ों के लिए दूर थोडी है एक बार फिर जैसलमेर आ जाएंगे। गाड़ी चल रही है, आगे बढ़ रही है दोनों तरफ रेत के टीले है, ऐसा लग रहा है मानो सोने के पहाड़ बने हुए हैं आंखों के सामने ऐसा दृश्य मन को मोह लेने वाला है। और मेरे शब्द उस अनुभूति की व्याख्या करने में असमर्थ हो रहे हैं बस इस दृश्य को दिल से ही महसूस किया जा सकता है थोड़ी देर बाद हम लौद्रवा जैन मंदिर पहुंचे। ऐसा माना जाता है कि लौद्रवा जैन मंदिर की स्थापना परमार राजपूतों ने कराई थी। बाद में यह मंदिर भाटियों की कब्जे में आ गया।

लौद्रवा का जैन मंदिर कला की दृष्टि से बड़ा महत्व का है। दूर से ऊँचा भव्य शिखर तथा इसमें स्थित कल्पवृक्ष दिखाई पड़्ने लगते हैं। इस मंदिर में गर्भगृह, सभा मंडप मुख मंडप आदि है। यह मंदिर काफी प्राचीन है तथा समय-समय पर इसका जीर्णोधार होता रहा है। मंदिर में प्रवेश करते ही चौक में एक भव्य पच्चीस फीट ऊँचा कलात्मक तोरण स्थित है। इस पर सुंदर आकृतियों का रुपांतन पर खुदाई का काम किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में सहसफण पार्श्वनाथ की श्याम मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह मूर्ति कसौटी पत्थर की बनी हुई है। गर्भगृह के मुख्य द्वार के निचले हिस्से में गणेश तथा कुबेर की आकृतियाँ बनी हुई हैं। इसके खंभे विशाल हैं, जिसपर घट पल्लव की आकृतियाँ बनी हुई हैं। इस मूर्ति के ऊपर जड़ा हुआ हीरा मूर्ति के अनेक रुपों का दर्शन करवाता है।

इस मंदिर के चारों कोनों में एक-एक मंदिर बना हुआ है। मंदिर के दक्षिण-पूर्वी कोने पर आदिनाथ, दक्षिण-पश्चिमी कोने पर अजीतनाथ, उत्तर-पश्चिमी कोने पर संभवनाथ तथा उत्तर-पूर्व में चिन्तामणी पार्श्वनाथ का मंदिर है। मूल मंदिर के पास कल्पवृक्ष सुशोभित है। मूल प्रासाद पर बना हुआ शिखर बड़ा आकर्षक है। तोरण द्वार, रंगमंडप, मूलमंदिर व अन्य चार मंदिर तथा उन पर निर्मित शिखर और कल्पवृक्ष सभी की एक इकाई के रुप में देखने पर इन सब की संरचना बड़ी भव्य प्रतीत होती है। इस मंदिर में एक प्राचीन कलात्मक रथ रखा हुआ है, जिसमें चिन्तामणि पाश्वनाथ स्वामी की मूर्ति गुजरात से यहाँ लाई गई थी।

लौद्रवा जो आज ध्वस्त स्थिति में है। प्राचीन काल में बड़ा समृद्ध था। यहाँ काल नदी के किनारे प्राचीन शिव मंदिर था। आज लगभग इसका तीन चौथाई भाग भूमिगत हो चुका है। यहाँ पंचमुखी शिवलिंग है। जिसकी तुलना ऐलिफेंटा गुहा व मध्य प्रदेश में मंदसौर से प्राप्त शिवलिंग से की जा सकती है। इसके अतिरिक्त विष्णु, लक्ष्मी, गणपति, शक्ति व कई पशु-पक्षियों की मूर्तियाँ भी रेत में डूबी पड़ी है। प्राचीन कला की दृष्टि से लौद्रवा का आज भी अत्यधिक महत्व है।


चित्र देखिये



लौद्रवा जैन मंदिर

मंदिर में मैं

वाह पोज तो मस्त है

इसके बाद हम यहाँ से जल्दी से निकले और एक वीर गाँव कुलधरा की ओर निकल पड़े मिलते है अगले भाग में कुलधरा गाँव में

अगले भाग में जारी...


Comments

  1. बढ़िया पोस्ट.....लौद्रवा के बारे ... |

    विवरण अभी और बढाया जा सकता है , फोटो छोटे लगाये हुए कम से कम 600x400 पिक्सल के फोटो लगाइए....

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    1. उस समय बढ़िया कैमरा नहीं था जी ऐसे ही आये फोटो।

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