पिस्सू टॉप की चढ़ाई से घबराकर कपिल खच्चर करता है और कहता है कि पिस्सू टॉप पर मिलेगा। लेकिन वह नहीं मिला हमने उसका पिस्सू टॉप पर भंडारे में नाम भी बुलवाया लेकिन वह नहीं मिला हम यह सोच कर आगे बढ़ गए चलो शेषनाग मिल जाएगा। इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहाँ क्लिक करें।
मन में सिर्फ कपिल ही घूम रहा था हम आगे तो बढ़ रहे थे लेकिन बहुत ही चिंता थी। लेकिन थोड़ी देर बाद जब हम शेषनाग झील पहुंचे तो उसे देख कर मंत्र मुक्त हो गए। बिल्कुल नीला पानी और आसपास ग्लेशियर साथ में कई हजार मीटर ऊंचे पहाड़ ऐसा लग रहा था मानो हम आसमान में हैं और सारी धरती नीचे। जब ऐसा विचार मन में आता है तो मन भी बहुत ऊंची उड़ान भरना शुरू होता है। वह एहसास शब्दों में बयां करने वाला नहीं होता वह तो बस महसूस किया जा सकता है। और मैं भी महसूस कर रहा था।
अमरनाथ यात्रा में इस शेषनाग झील का खासा महत्व है। यह झील चंदनवाडी से लगभग 16 किलोमीटर दूर है। अंकित मैं और प्रमोद पिछले 16 किलोमीटर से लगातार पैदल चल रहे हैं। और एक कपिल है जो अभी युवावस्था में ही है, और वह घबराकर खच्चर पर बैठ कर आगे बढ़ जाता है। खैर.!! यह झील सर्दियों में जम जाती है और कभी-कभी तो ज्यादा ठंड होने के कारण यह यात्रा के दौरान भी जमी रहती है। तथा यहां से लिद्दर नदी का उद्गम होता है।
इस झील पर एक पौराणिक कथा भी है कहते हैं भगवान भोलेनाथ जब मां पार्वती को अमर कथा सुनाने अमरनाथ की गुफा में ले जा रहे थे तो वह चाहते थे कि इस कथा को मां पार्वती के सिवा ओर कोई न सुने। तो इसलिए वह अपने सभी सांपो नागों को अनंतनाग में, नंदी को पहलगाम में, चंद्रमा को चंदनवाड़ी में छोड़ देते हैं। लेकिन उनके साथ अभी शेषनाग है और भगवान भोले शंकर शेषनाग को शेषनाग झील में छोड़ते हैं तथा यह जिम्मेदारी लगाते हैं कि जब तक भगवान भोले शंकर मां पार्वती को अमर कथा सुनाकर वापिस ना आए तो वह तब तक किसी को भी शेषनाग झील से आगे ना जाने दें। कुछ लोगों का कहना है कि इस झील में कभी-कभी शेषनाग को देखा गया है और मुझे लगता है शायद ऐसा हुआ भी हो क्योंकि एक तो इस झील का पानी बिल्कुल नीला है दूसरा जब यह झील सर्दियों में जम जाती है तो इसका आकार बीच में शेषनाग की तरह हो जाता है तो इस आधार पर कहा जा सकता है कि वास्तव में इस झील में आज भी शेषनाग निवास करता है।
यहां से अभी बेस कैंप लगभग 3 किलोमीटर दूर है कुछ ही देर में हम शेषनाग पहुंचते हैं और वहां पर कपिल का इंतजार करते हो तथा उसको इधर-उधर ढूंढते हैं लेकिन वह नहीं मिला हमने उसका कई बार भंडारों से नाम भी बुलवाया लेकिन वह नहीं मिला और अब इस सब काम में हमें शाम के 4:00 बज गए आखिर क्या करते अब आगे नहीं जा सकते। दिल टूट सा गया क्योंकि हमने तय किया था की आज शेषनाग पार तो कर ही रहेंगे और रात पंचतरणी में ही बिताएंगे लेकिन ऐसा हो न सका। खैर हमने तंबू लिया सामान रखा पर चले गए भंडारों में खाना खाने। जब हम भंडारे से खाना खाकर वापस तंबू में आ रहे थे तो हमें एक std दिखी यहां से मैंने अपने घर फोन किया तो पता चला कपिल तो पंचतरणी पहुंच गया और कल बाबा के दर्शन करके सीधा अंकल के घर ही मिलेगा। तो ज्यादा बात ना करते हुए मैंने फोन रख दिया। लेकिन बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि उसने बोला था कि हम पिस्सू टॉप मिलेंगे। तो उसने वादा खिलाफी की। खैर कोई बात नहीं अब हम निश्चिन्त हो गए चिंता जो चिता के सामान होतो है वह हमसे दूर हो गई। बस फिर क्या था हम तंबू में आकर सो गए।
शेषनाग झील |
छोटी छोटी धाराएं |
तम्बू नगरी जहाँ गड़रिये, चरवाहे रहते है |
दूर दूर तक भयंकर ग्लेशियर |
शेषनाग से निकलती लिद्दर नदी की धारा |
शेषनाग झील के पास लगा भंडारा |
अगले भाग में जारी...
पढ़कर महसूस हो रहा है की यात्रा आनंददायक रही। पोस्ट में शायद दो बार टंकण(😂😂) की गलती हुई है। एक जगह लिखा है की 'शेषनाग रहता है' जिसे 'रहते हैं' कर लें, क्योंकिं शेषनाग देवता हैं और आदर के पात्र हैं। दूसरी गलती,ग्लेशियर के एक चित्र में केप्शन में लिखा है 'भयंकर ग्लेशियर' और आखिरी चित्र में अद्भुत दृश्य।🙄 दोनों जगह एक ही शब्द कर लें। हाँ एक बार डर लगा हो तो'भयंकर' शब्द रहने दें 😊😊😊😊 और दूसरे में अद्भुत।😁😁😁😁
ReplyDeleteयही कड़ी पढ़ी , सुंदर चित्र व वर्णन .सहयात्री की चिंता स्वाभाविक थी लेकिन सकुशल थे पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDeleteअगर कोई हमारे साथ यात्रा पर गया है तो उसकी यात्रा सकुशल पूरी हो यह ले जाने काले का परम कर्तव्य है। और धन्यवाद जी
Deleteबढ़िया पोस्ट और चित्र......
ReplyDeleteशेषनाग झील अच्छी लगी..
धन्यवाद जी
Delete