आइये आज आपको
लेकर चलते है भगवान शिव के पावन धाम, पंचकेदारों में
से एक केदार धाम बाबा तुंगनाथ जी की यात्रा पर। तुंगनाथ मंदिर बाबा भोले शंकर के
पंच केदार में से तृतीय केदारधाम है। पंच केदार का क्रम इस प्रकार है।
1. केदारनाथ
2. मद्महेश्वर
3. तुंगनाथ
4. रुद्रनाथ
5. कल्पेश्वर
अपनी कंपनी
घुमक्कड़ी एडवेंचर जिसकी शुरुआत मैंने और सुनीता शानू जी ने की तो इसके माध्यम से
तुंगनाथ चंद्रशिला यात्रा का आयोजन 29 सितंबर 2017 को किया गया। अब प्रोफेशनल कंपनी है तो इसका
पूरा टूर पैकेज बनाया गया और समय से इसको सोशल साइट पर प्रमोट किया जिससे कई
यात्री घुमक्कड़ी एडवेंचर के साथ जुड़े। जिनमे नीति टंडन, सौनाक्षी, मानू, अंजली, पूनम माटोलिया, अचला शर्मा, मनोज शर्मा,
मनोज कुमार, ऋषिता, दिव्या, युधिष्ठिर, गरिमा, उर्वशी, दीपिका, मंजू शर्मा, पवन
चोटिया, दीपक, शिवा और विक्रम
रहे । यह सब लोग अलग अलग जगह से हमारे साथ जुड़े और तुंगनाथ चंद्रशिला ट्रैक पर
जाने के लिए तैयार हुए। और खास बात यह रही कि हमारे साथ दिल्ली से ही खाने बनाने
का सामान और हलवाई साथ गए।
दिल्ली से वापिस
दिल्ली लौटने तक सभी व्यवस्था हमारी थी। जिसका शुल्क 5999/- प्रति व्यक्ति रखा गया। तो समय रहते सभी
तैयारी पूरी कर ली गई। अब वह शुभ घड़ी 29 सितंबर आई जिस
दिन हमे इस यात्रा पर जाना था। सभी लोग तय समय अनुसार 9 बजे तक सराय रोहिल्ला पहुंच चुके थे किंतु
मनोज शर्मा जी जो जयपुर से गाड़ी चला कर आ रहे थे उनको आने में थोड़ा विलंब हुआ।
मुझे बार बार इस बात का डर सता रहा था हम यहां से जितनी देर करेंगे आगे भी उतनी ही
देर होने वाली है। लेकिन ऐसे ही अपने एक साथी को छोड़ कर जाना ठीक नहीं था। तो इस
कारण से हमारी यात्रा रात 11 बजे शुरू हुई।
सराय रोहिल्ला से चले ही थे कि कश्मीरी गेट फ्लाईओवर पर भीषण जाम मिला, गाड़ी रेंग रेंग कर चल रही थी। एक तो मनोज जी
जयपुर से देर से आये और यह जाम बड़ी टेंशन बढ़ा रहा था, वैसे जो होना हो उसको कौन टाल सकता है। खैर
जैसे तैसे गाड़ी दिल्ली से बाहर गाज़ियाबाद पहुंची तो यहां भी भीषण जाम। ऐसा लग रहा
था कि जैसे सभी सड़कों की गाड़ियां इसी हाईवे पर आ गई हो। गाड़ी में सभी अंताक्षरी
खेलते हुए, गाने गाते - सुनते, सुनते हुए जा रहे थे तो जाम कब कट गया कि पता
ही नहीं चला। घड़ी में 3 बज रहे थे और हम
पहुंच गए शिवा टूरिस्ट होटल पर जो उत्तराखंड बॉर्डर से पहले बराला उत्तर प्रदेश
में पड़ता है। यह हमारा पहला पड़ाव है। यहां सबने चाय नाश्ता किया और कुछ देर रुकने
के बाद चल पड़े। हरिद्वार पहुंचते पहुंचते सूर्य देव ने अपनी हल्की हल्की दस्तक
देनी शुरू कर दी थी तो हल्के उजाले में गाड़ी के अंदर से ही माँ गंगा व हर की पौड़ी
के दिव्य दर्शन हुए।
अब ऋषिकेश से
पहले रेलवे फाटक बंद था, ट्रेन की
क्रोसिंग के बाद ही खुलेगा तो मैंने झट से उतरकर कुछ सूर्योदय के शानदार फोटू अपने
कैमरे में कैद कर लिए। अरे भाई ये कैमरा किस लिए है कुछ अच्छा दिखे तो इसमें कैद
कर लो। मैंने इस तरह समय का सदुपयोग किया और कुछ मिनटों में फाटक खुला और गाड़ी
चली।
दिन अच्छे से निकल आया था और सबकी नींद भी खुल गई थी तो फिर वही गाने सुनने और सुनाने का सिलसिला शुरू हुआ। शिवपुरी, सिरासु, ब्यासी होते हुए लागभग 10 बजे तक हम देवप्रयाग पहुंचे। यह हमारा दूसरा पड़ाव था। देवप्रयाग पंच प्रयागों में एक प्रयाग है। इसी के साथ यहां भागीरथी और अलकनंदा नदी का संगम होता है जो यहां से गंगा के नाम से प्रवाहित होती है। देवप्रयाग हिन्दू धर्मग्रंथों में बहुत पवित्र जगह मानी गई है। और मान्यता है कि जब राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने को राजी कर लिया तो 33करोड़ देवी-देवता भी गंगा के साथ स्वर्ग से उतरे। तब उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया जो गंगा की जन्म भूमि है।
यहां सभी फ्रेश हुए, नाश्ता किया और पवित्र संगम के दर्शन किये। कुछ यात्रियों ने तो यहां संगम में स्नान भी किया। लेकिन अपने से स्नान नहीं हुआ अरे भाई हममे इतनी हिम्मत नहीं कि आग में कूद जाएं हाहाहा और क्या इतने ठंडे पानी मे स्नान करना आग में कूदने बराबर ही तो है। लागभग 1 घंटे यहां रुकने के बाद हम चल दिये। जब एक अच्छा ग्रुप होता है तो सभी आपस के मौज मस्ती करते है, नाचते गाते है जिस कारण एक अलग प्रकार की रोचकता बनी रहती है और सफर का आनंद 4 गुणा बढ़ जाता है।
दिन अच्छे से निकल आया था और सबकी नींद भी खुल गई थी तो फिर वही गाने सुनने और सुनाने का सिलसिला शुरू हुआ। शिवपुरी, सिरासु, ब्यासी होते हुए लागभग 10 बजे तक हम देवप्रयाग पहुंचे। यह हमारा दूसरा पड़ाव था। देवप्रयाग पंच प्रयागों में एक प्रयाग है। इसी के साथ यहां भागीरथी और अलकनंदा नदी का संगम होता है जो यहां से गंगा के नाम से प्रवाहित होती है। देवप्रयाग हिन्दू धर्मग्रंथों में बहुत पवित्र जगह मानी गई है। और मान्यता है कि जब राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने को राजी कर लिया तो 33करोड़ देवी-देवता भी गंगा के साथ स्वर्ग से उतरे। तब उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया जो गंगा की जन्म भूमि है।
यहां सभी फ्रेश हुए, नाश्ता किया और पवित्र संगम के दर्शन किये। कुछ यात्रियों ने तो यहां संगम में स्नान भी किया। लेकिन अपने से स्नान नहीं हुआ अरे भाई हममे इतनी हिम्मत नहीं कि आग में कूद जाएं हाहाहा और क्या इतने ठंडे पानी मे स्नान करना आग में कूदने बराबर ही तो है। लागभग 1 घंटे यहां रुकने के बाद हम चल दिये। जब एक अच्छा ग्रुप होता है तो सभी आपस के मौज मस्ती करते है, नाचते गाते है जिस कारण एक अलग प्रकार की रोचकता बनी रहती है और सफर का आनंद 4 गुणा बढ़ जाता है।
श्रीनगर, रुद्रप्रयाग होते हुए 2:30 बजे हम पहुंचे अगस्तमुनि यह हमारा तीसरा पड़ाव था। यहां हमारे हलवाइयों ने अपना सामान निकाला और हम सबको चाय पिलाई फिर स्वादिष्ट भोजन बनाया जिसमे मटर पुलाव और रायता था। भोजन में आनंद आ गया था।
यहां भोजन करने के बाद लागभग 4 बजे हम यहां से चले और उखीमठ होते हुए अब सीधे चोपता जाकर रूके इसके आगे हमें ट्रैकिंग करके जाना है। दिन लगभग छिप गया था।
आगे क्या हुआ
जल्द ही अगले भाग में लिखा जाएगा तब तक आप कहीं मत जाइए, ऐसे ही बने रहिये हमारे साथ और घूमते रहिये।
आपका हमसफर आपका
दोस्त
हितेश शर्मा
सह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
धन्यवाद जी...
Deleteरोचक यात्रा वर्णन । खूबसूरत तस्वीरे । अब तो मेरा भी मन हो रहा इस घुमक्कड़ी ग्रुप में शामिल होने के लिए ।
ReplyDeleteधन्यवाद जी बिल्कुल आपका स्वागत है शामिल हो जाइए...
Deleteसुन्दर चित्रण
ReplyDeleteवाह! अगले कार्यक्रम में आपके साथ चलने का मन हो चला है।
ReplyDeleteधन्यवाद जी बिल्कुल स्वागत है...
Deleteभाई , हमें भी याद कर लोगे क्या ? जयपुर से हूँ और घुम्मकड़ी का शौक़ीन हूँ ।
ReplyDeleteबिल्कुल स्वागत है जी आपका....
Deleteशानदार वर्णन मजा आ गया,
ReplyDeleteदूसरा भाग नही लिखा क्या सर जी
जल्द ही लिखता हूँ अशोक जी...
DeleteVery nice sir, next oapa kab लिखोगे sir
ReplyDeleteजल्द ही लिखने वाला हूँ जी...
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