बुन्देलखण्ड की शान धर्म नगरी ओरछा

बुन्देलखण्ड की शान धर्म नगरी ओरछा



यह मन निश्वर है, चलायमान है, किसी की सुनता भी नहीं है। बस अपनी ही खुद की उधेड़बुन में लगा रहता है।

ऐसे ही मन में विचार आने लगा यार आज कहीं जाना चाहिए तभी हरियाणा पर्यटक और उत्तर प्रदेश पर्यटक की किताब देखी। हरियाणा में तो कुछ मिला नहीं लेकिन उत्तर प्रदेश वाली पुस्तक में बस एक नाम दिखा “ओरछा”। तभी अपने मुकेश जी को फोन मिला दिया और कह दिया भाई साहब कल सुबह सुबह आपके साथ ओरछा में बितायेंगे।

तभी ट्रेन देखी और तय किया कि रात  अमृतसर हज़ूर साहिब एक्सप्रेस से जायेंगे, ये ट्रेन रात 11:45 पर दिल्ली से निकलती है। हम जाने वाले 4 लोग है मैं, विनय, पंकज और शुभम। शुभम और पंकज तो साथ थे ही लेकिन विनय को आने में थोड़ी देर हो गई रात लगभग 11 बजे विनय आया और जल्दी से हम पहुँच गए वेलकम मेट्रो स्टेशन। मेरे और पंकज के पास मेट्रो कार्ड था लेकिन शुभम और विनय के पास नहीं था तो विनय टिकट के लिए काउंटर पर गया तो वहां एक शराबी टाइम पास कर रहा था तो विनय ने उसको कह दिया “जल्दी कर बे” इतने में वो चिढ़ गया और विनय से उसकी झड़प हो गई लेकिन हाथापाई नहीं हुई। अभी हमारी ट्रेन है लड़ने का समय भी नहीं है। लेकिन ये बात समझे कोन.?? खैर मैंने विनय को समझाया टिकट ली और चल दिए। अभी एक्सलेटर पर चढ़ ही रहे थी कि नसेड़ी ने फिर गाली देनी शुरू कर दी तो विनय और शुभम हाथ में चप्पल लेकर और साथ में कुछ हरकते करके उसको दिखा रहे थे। खैर एक्सलेटर ने हमें ऊपर प्लेटफॉम पर पहुंचा दिया और नसेड़ी हमारी आँखों से ओझल हो गया। तभी पंकज बोला यार ये ट्रिप मस्त है।


ख़ोर लगभग 11:30 बजे हम नई दिल्ली स्टेशन पहुंचे यहाँ हमे लंबी कतार में खड़ा होने की जरुरत नहीं पड़ी, जैसे अक्सर दिन के समय पड़ती है। टिकट लेते ही हम प्लेटफॉम नम्बर 5 पर ट्रेन का इंतजार करने लगे। पंकज तो सो गया थोड़ी देर में ट्रेन आई और पंकज को उठाया शायद अगर हम पंकज को नहीं उठाते तो वो वहीं सोता रहता। हम पहले से ही वहीं खड़े थे जहाँ जर्नल डिब्बा लगने वाला था। हम थोड़ी कोशिश के साथ डिब्बे में घुस गये। अगला स्टेशन आगरा कैंट है वहां ट्रैन थोड़ी खाली होगी। तब तक हमे ऐसे ही लदे हुए जाना है। खैर कुछ घंटों में ट्रेन आगरा कैंट पहुंची और यहाँ खाफी भीड़ उतर गई। अब मैं बिना समय बिताए ऊपर वाली सीट पर सो गया अब सीधे आंख खुली 7 बजे और झाँसी कुछ ही मिनटों में आने वाला है। ठीक 7:15 बजे ट्रेन झाँसी पहुंची। यहाँ बिना रुके हम स्टेशन से बाहर आये और एक सज्जन व्यक्ति से पूछा के ओरछा के लिए बस कहाँ से मिलेगी तो उन्होंने कहा इस ऑटो में बैठ जाओ 10 रु एक सवारी के लेगा और बस अड्डे छोड़ देगा वहां से बस मिल जायेगी। उसका धन्यवाद से अभिवादन करते हुए हम उस ऑटो में बैठ गए। बस अड्डे पहुँचते ही ऑटो वाले ओरछा की आवाज लगा रहे थे। जब ऑटो सामने हो और वहीं जा रहा हो जहाँ हमने जाना है तो बस का इंतजार करना हमने बेमानी समझा। और बैठ गए उसी ऑटो में मात्र 20 रु सवारी के हिसाब से उसने मात्र 20 मिनट में हमे ओरछा छोड़ दिया।
ऑटो वाले ने हमे ओरछा के मैं चौराहे पर छोड़ा, जिसके बायीं तरफ ओरछा किले की तरफ रास्ता जाता है, दायीं तरफ राजा राम जी के मंदिर और सीधे बेतवा नदी और जंगल के लिए रास्ता आगे बढ़ता है। हम अभी वहीँ चौराहे पर खड़े रहे, और मैंने मुकेश पांडे जी को फोन किया और उनको बताया कि भाई साहब हम ओरछा पहुँच गए.!! उन्होंने कहा मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ इतने आप सीधे जाकर बेतवा में स्नान कर लो। इतनी बात होते ही हम थोड़ा आगे बढे कि विन्नी भूख के कारण तड़पने लगा। और पंकज 2 नम्बर जाने के लिये तड़पने लगा। घुमक्कड़ी का नियम है कि परिस्थिति जैसी हो उसी में ढलना। लेकिन विन्नी नहीं समझा तो मैंने कहा अभी पहले नहा लेते है फिर कुछ खा लेंगे। तभी बायीं हाथ पर एक सुलभ शौचालय दिखा पंकज वहां 2 नम्बर से फ्री होकर आया। फिर हम आगे बढ़ गए करीब 300 मीटर चलकर हम बेतवा नदी के पास पहुँच गए। अभी वहां पहुंचे ही थे कि मुकेश जी का फोन आ गया, उन्होंने पूछा कहाँ हो.? मैंने कहा जी अभी तो हम बस बेतवा नदी के पास पहुंचे है यहाँ गेट बना है। उन्होंने कहा मैं 2 मिनट में आता हूँ। तभी 2 मिनट बाद हमे नीली बत्ती की गाड़ी आते दिखी जिसमें मुकेश जी ने बाहर आते ही हाथ मिलकर गले मिलकर अभिवादन किया। और तभी उन्होंने हमारा प्रोग्राम पूछा तो मैंने बताया जी आज रात ही दिल्ली के लिए निकलना है। तो वो बोले आओ चलते है वहां सामान रख देना तभी हम उनकी नीली बत्ती की गाड़ी में हो लिये। और वह हमें ले गए ओरछा रेजीडेंसी होटल में। आज मुकेश जी को किसी जरुरी काम से टीकमगढ़ जाना है। तो वह हमारी सप्रेम निशुल्क व्यवस्था करके तथा ओरछा के बारे में जानकारी देकर चले गए। चलते चलते मुकेश जी के साथ मुकेश जी के फोन में सेल्फी ली और फिर उनका गले मिलकर अभिवादन किया।

मन को बहुत खुसी होती है जब घुमक्क्कड़ आपस में मिलते है। मुकेश जी जा चुके है हम भी लघु शंका, दीर्घ शंका से फ्री होकर तथा नहाने वाले कपडे 1 बैग में रखकर निकल पड़े। विन्नी तो पहले से ही भूख के कारण तड़प रहा था। तो हमने ओरछा की मशहूर दुकान राजू चाट भंडार के बढ़िया समोसे स्वादिस्ट प्याज वाली चटनी के साथ खाये। मुझे तो थोड़ी कम भूख लगती है तो मेरा 2 समोसे में ही काम हो गया। पंकज ने ओरछा की मशहूर भजिया भी खाई। और इतना नमकीन खा लिया तो मीठा खाने तो बनता ही है हमने फिर 1-1 गुंजिया भी खाई जो बेहद स्वादिस्ट लगी। इसके बाद थोड़ा आगे बढे उसी मेन चौक पर आये तो फिर विन्नी ने कहा भूख लग रही है। तो उसकी भूख शांत कराने के लिए कोने वाली दुकान श्री राधे स्वीट्स में आलू के परांठे खाये। 1 से ज्यादा खाये नहीं गए भाई का पेट भर गया। चलो ख़ैर हम आगे बढे बेतवा नदी के किनारे। शुरू में बायीं हाथ पर हमने स्नान किया। वाह सच में मज़ा आ गया। मुझे पानी ज्यादा ठंडा भी नहीं था। मुझे ठन्डे पानी से थोड़ा डर लगता है। नहाने के बाद हमने वहीं पुल से फोटोग्राफी करी फिर आगे बढ़ गए जंगल के लिये। किला और राजा राम जी का मंदिर आकार देखेंगे। थोड़ा आगे चले तो टिकट काउंटर आया जहाँ से हमे टिकट लेनी थी जंगल की वहां हमने टिकट ली जो मात्र 15 रू की थी। फिर मैंने सोचा यार इतना बड़ा जंगल पैदल घूमेंगे कैसे.? थक जायेंगे.!! तो वहां कई सारी बाइक खड़ी थी बाइक के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया 400 रू एक बाइक के लगेंगे मोल भाव करके 200 में बात बनी उन्ही से जंगल के बारे में जानकारी ली। उनके कहे मुताबिक जंगल में कोई खतरनाक जानवर नहीं है। नील गायें, भेड़िया, लोमड़ी, आदि है। खैर हमने ज्यादा बात नहीं की और निकल गए जंगल के लिए। थोड़ी आगे चलकर बायीं हाथ मुड़कर जंगल का गेट था जहाँ एक वन विभाग के कर्मचारी ने टिकट चेकर और हम जंगल में दाखिल हो लिए।

पीली लाल मिट्टी से बना, बुंदेलखंड की शान यह जंगल बेहद शांत है। मैंने नेट पर पढ़ा था तो पता लगा इस जंगल में क्रन्तिकारी चंद्र शेखर आज़ाद 2 साल बिताए थे। आखिर इस धरती का इतिहास बहुत पुराना है।

जंगल में भी शांत बेतवा नदी को देखकर दुबारा नहाने का मन कर गया। वहां मैं पंकज और विन्नी दुबारा नहाएं लेकिन शुभम नहीं नहाया। पानी में हम लेट गए खूब मस्ती करी। विन्नी तो नदी में शंख ढूंढने लगा। खैर वह कुछ शंख ढूंढने में कामयाब रहा। खैर इसके बाद हम जंगल से बाहर निकले और थोड़ा और आगे गए तो एक पुल और आया वहां कुछ फोटोग्राफी करी और वापिस आ गए। बाइक के पैसे दिए। और थोड़ा सा आगे चलकर जहाँ बेतवा नदी के किनारे गेट बना था वहां गोलगप्पे खाये 10 के 8 गोलगप्पे मज़ा आ गया। हम सबका तो पेट भर रहा था लेकिन विन्नी को फिर भूख लग आयी। तो फिर वहीँ चौराहे पर भोला रेस्टोरेंट पर दाल रोटी खाई। फिर वापिस होटल के कमरे पर आ गये। शायद मेरे सिवा सब थक गए थे.!! तभी तो कमरे पर पहुँचते ही सब सो गए। खैर शाम 5:30 बजे उठे तो राजा राम जी के मंदिर जाना था और किले में रात को म्यूजिक एंड लाइट शो होता है वह देखने जाना था। पंकज मैं और शुभम तो उठ गये लेकिन विन्नी कहने के बाद भी नहीं उठा। एक कहवात है जो सोवत है वो खोवत है और जो जागत है वो पावत है। हम विन्नी को कमरे पर छोड़कर निकल लिए। सबसे पहले राजा राम जी के मंदिर पहुंचे। जहां पावन आरती शुरू होने वाली थी। हम वहीँ रुके आरती देखी मन प्रसन्न हो गया, मैं को एक अलग प्रकार की शांति मिल रही थी।

कहा जाता है कि संवत 1600 में तत्कालीन बुंदेला शासक महाराजा मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुअंरि गणेश राजा राम को अयोध्या से ओरछा लाई थीं।  एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी तो राम की भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया।गुस्से में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना और दृढ़ होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक राजा राम के दर्शन नहीं हुए। वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें राजा राम के दर्शन हुए। रानी ने उनसे ओरछा चलने का आग्रह किया। उस समय मर्यादा पुरुशोत्तम श्रीराम ने शर्त रखी थी कि वे ओरछा तभी जाएंगे, जब इलाके में उन्हीं की सत्ता रहे और राजशाही पूरी तरह से खत्म हो जाए। तब महाराजा शाह ने ओरछा में ‘रामराज’ की स्थापना की थी, जो आज भी कायम है।

देश में भगवान राम का यह एकमात्र ऐसा मंडीर है जहाँ राजा राम जी की पूजा भगवान के रूप में तो की ही जाती है लेकिन राजा के रूप में भी की जाती है। अब राजा राम है तो उन्हें सिपाही सलामी देते है। यहां राजा राम को सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। इस सलामी के लिए मध्य प्रदेश पुलिस के जवान तैनात होते हैं। राजा राम का मंदिर देखने में किसी राज महल सा प्रतीत होता है। मंदिर की वास्तुकला बुंदेला स्थापत्य का सुंदर नमूना नजर आता है। कहा जाता है कि राजा राम की मूर्ति स्थापना के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया जा रहा ता। पर मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है। कहा जाता है कि यहां राजा राम हर रोज अयोध्या से अदृश्य रूप में आते हैं। 

मंदिर में राजा राम, लक्ष्मण और माता जानकी की मूर्तियां स्थापित हैं। इनका श्रंगार अद्भुत होता है। मंदिर  का प्रांगण काफी विशाल है। देश में अयोध्या के कनक मंदिर के बाद यह दूसरा भव्य मंदिर है। मंदिर परिसर में फोटोग्राफी निषेध है। मंदिर का प्रबंधन मध्य प्रदेश शासन के हवाले है। पर लोकतांत्रिक सरकार भी ओरछा में राजाराम की हूकुमत को सलाम करती है। ओरछा शहर को कई तरह के करों से छूट मिली हुई है। यहां पर लोग राजा राम के डर से रिश्वत नहीं लेते और भ्रष्टाचार करने से डरते हैं। मंदिर में प्रशासन की ओर से प्रसाद का काउंटर है। यहां 22 रुपये का प्रसाद मिलता है। प्रसाद में लड्डू और पान का बीड़ा दिया जाता है। हालांकि मंदिर के बाहर भी प्रसाद की तमाम दुकाने हैं जहां से आप फूल प्रसाद आदि लेकर मंदिर  में जा सकते हैं। मंदिर के बाहर जूते रखने के लिए निःशुल्क काउंटर बना है। राजा राम मंदिर में रामनवमी बड़ा त्योहार होता है।

आप राजा राम के मंदिर के अंदर बेल्ट लगाकर नहीं जा सकते हैं। इसके पीछे बड़ा रोचक तर्क ये दिया जाता है कि राजा के दरबार में कमर कस कर नहीं जाया जा सकता है। यहां सिर्फ राजा राम की सेवा में तैनात सिपाही ही कमरबंद लगा सकते हैं। आप जूता घर में अपना बेल्ट जमा करके फिर मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं।



राजा राम के मंदिर की मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि ये अयोध्या से लाई गई हैं। महारानी की कहानी के मुताबिक उनकी तपस्या के कारण राजा राम अयोध्या से ओरछा चले आए थे। पर स्थानीय बुद्धिजीवी मानते हैं कि बाबर के आदेश पर अयोध्या में राम मंदिर तोड़े जाने के बाद अयोध्या के बाकी मंदिरों की सुरक्षा का सवाल उठने लगा। ऐसी स्थित में कई मंदिरों की बेशकीमती मूर्तियों को ओरछा में लाकर सुरक्षित किया गया। कहा जाता है कि ओरछा के ज्यादातर मंदिरों में जो मूर्तियां हैं वे अयोध्या से लाई गई हैं।

ऐसे पावन मंदिर से दूर जाना मन को भा नहीं रहा था। लेकिन यह पूरी धरती ही भगवान राम की है यह सोचकर हम चल पड़े ओरछा किले में म्यूजिक एंड लाइट शो देखने। जिसकी टिकट 150 रू है लेकिन मुकेश जी से बात करके वह हमारे लिए निशुल्क हो गई। यहाँ बुंदेलखंड का पूरा इतिहास किले पर रंग बिरंगी लाइटों के साथ ध्वनि द्वारा सुनाई दे रहा था। इस शो ने मेरा मन मोह लिया। आनंद आ गया इसके बाद हम कमरे पर आये विन्नी को उठाया और निकल पड़े झाँसी के लिए। झाँसी से हम संपर्क क्रांति ट्रैन से दिल्ली आ गए।

orchha bundelkhand, orchha palace
बेतवा नदी के किनारे ओरछा की छतरियां
















बढिया समोसे तथा स्वादिस्ट गुंजियाँ

सरकार राजा राम का मंदिर


लाइट और साउंड शो की एक झलक

आज के लिए इतना ही आगे भी आपको देश मे छिपी हुई विरासतों से रूबरू करवाते रहेंगे। तब तक आप कहीं मत जाइयेगा, ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ।
आपका हमसफर आपका दोस्त
हितेश शर्मा

Comments

  1. वाह!शानदार यात्रा संस्मरण

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  2. aapne bahut achha likha hai

    mai bhi ek hindi blogger hu

    mai Mumbai ke bareme likhta huan

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