शाम को छानी के आसपास भयंकर बर्फबारी हो रही थी। उसका आनंद अपने प्रदीप जी कुछ ही ज्यादा ले रहे थे। इस यात्रा वृतान्त को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें…
थक कर जब सोने की बात आई तो सभी अपने अपने स्लीपिंग बैग में घुसकर सोने लगे ठण्ड काफी ज्यादा थी कि स्लीपिंग बैग के अंदर भी उसका एहसास हो रहा था। मगर यह एहसास कुछ ज्यादा अच्छा लग रहा था।
सुनसान जगह के जहाँ दूर-दूर कोई नहीं था सिर्फ छानी में 6 लोग थे कई लोगों को तो इन बातों से बहुत दर लगता है। आखिर हम ठहरे भूत जो शमशान में भी सो जाएं ये तो धरती का स्वर्ग है।
रात लगभग 1 बजे जब आग भी अच्छी तरह बुझ चुकी थी कि अचानक मेरी आँख खुल गई। यह क्या मैं स्लीपिंग बैग के अंदर हूँ फिर भी बेहद ठण्ड लग रही है। पैर के ऊपर रखा पैर भी गर्मी नहीं बना पा रहा। स्लीपिंग बैग से हाथ बाहर निकाल कर फोन देखा तो बंद हो चुका था। बेटरी नहीं थी। लेकिन सर्दी कुछ ज्यादा लग रही थी कि स्लीपिंग बैग से बाहर निकल कर देखना पड़ा आखिर क्या बात है.? बाहर देखा तो पाया यार पूरे स्लीपिंग बैग बर्फ से ढका है। रात में बर्फ बारी इतना ज्यादा हुई कि छानी के छोटे छोटे छेदों में से अंदर भी काफी बड़ी बर्फ की परत जम गई। खैर स्लीपिंग बैग से बर्फ हटाई और आग भी जलवाई तब जाकर चैन आया और नींद भी आ पाई।
अब तो सुबह 7 बजे ही आंख खुली। थोड़ी देर में मैगी बनकर तैयार हो चुकी थी उसको खाने के बाद हम समिट करने के लिए निकल पड़े। लगभग 100 कदम आगे जाकर बर्फ का तूफ़ान बढ़ जाता है जिस कारण से अनूप जी का रेन कोट फट जाता है। बेचारे अनूप जी वापिस छानी में जाने को कहने लगे, उसका यह निर्णय बिलकुल ठीक ही था नहीं तो आगे बहुत समस्या होती। अब हम 4 बचे एक हमारे गाईड कम पोर्टर, मैं, नितिन जी और अपने प्रदीप जी। हिम्मत के साथ आगे बढ़ रहे है।
तूफ़ान हमारे हौसलें की परीक्षा ले रहा है जो अभी रहम करने के मूड में नहीं है। एक जगह ऐसा हुआ मैंने तो हाथों में दस्ताने नहीं डाल रखे थे और लगभग 7-18 फिट बर्फ पर हाथ लगाकर ऊपर चढ़ना था और जेब से हाथ बाहर निकालते हुए ऐसा लग रहा था जैसे जान जा रही हो। तीनो आगे जा चुके थे बस मैं रह गया था। मैं इतना बुझदिल नहीं की बीच रास्ते में से वापिस आ जाऊं। निकाल दिए हाथ जेब से बाहर और चढ़ गया ऊपर।
फिर एक बार पोर्टर ने कहा कि तूफ़ान ज्यादा है वापिस चलना चाहिए लेकिन नज़र में तो सामने शिखर दिख रहा था कैसे उसको बिना फतह किये वापिस आ जाते।
कुछ ही देर में हम केदारकंठा की चोटी पर पहुँच गए। इसकी ऊंचाई 12506 फ़ीट यानी 3812 मीटर है। हम यहां बस 5 मिनट ही रुके बर्फ बहुत ज्यादा थी कि फोटो भी नहीं ले पाये। और वापिस आ गए छानी पर। आकर सूप पिया और फिर वापिस निकल लिए लगभग 1 घंटे चलने के बाद हम पहुंचे जूड़ा का तालाब जो बेहद शानदार जगह है। इसके बारे में मैं एक बात कहूंगा लोग घूमने के लिए शिमला, मसूरी, मनाली जाते है फिर आकार बताते है कि स्नोफॉल नहीं मिला। मैं कहता हूँ आप केदारकंठा आइये तबियत खुश हो जायेगी।
महज 2700 मीटर पर यह जुड़ा का तालाब बेहद शानदार तालाब है। जब हम यहां पहुंचे तो यह जमा हुआ था। कुछ देर यहां रुकने के बाद वापिस नीचे सांकरी गाँव आ गए। आज रात यहीं सांकरी में बितानी है। शाम के लगभग 4 बज रहे है थकावट बुरी तरह हो रखी है। मैं तो स्लीपिंग बैग में घुस गया। फिर कब रात के 9 बज गए पता ही नहीं लगा। खाना खाया और फिर सौ गये। अब सुबह 4:30 रहे लगभग 5:30 देहरादून के लिए यहाँ से बस जाती है। तैयार होकर बाहर पहुंचे तो बस खड़ी थी। हम बैठ गए फिर लगभग 3 बजे तक हम देहरादून पहुंचे। वहां शाम को हम बस से बैठ कर लगभग 12 बजे तक दिल्ली आ गए।
बहुत ठण्ड है भाई |
चल पड़ा छानी से कारवां |
वाह क्या नज़ारे है |
जुड़ा का तालाब |
जमा हुआ जुड़ा का तालाब |
वापसी में सांकरी गांव |
बस इतनी सी थी ये यात्रा। अगली बार आपको किसी और प्राकृतिक सौंदय से परिपूर्ण जगह की सैर करा कर लाएंगे तब तक आप कहीं मत जाइयेगा ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ।
आपका हमसफर, आपका दोस्त
हितेश शर्मा
वाह बेहतरीन संस्मरण लिखा है हितेश, तुम्हारी यात्राएँ अनवरत चलती रहें...
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया जी...
Deleteशानदार यात्रा शर्मा जी
ReplyDeleteधन्यवाद सर....
DeleteHar har mahadev Jay kedar kanta ki aapki yatra subh mangalmay ho
ReplyDeleteHam to ja nahi sakte hari kirpa say hame yaha bate 2 Darshan karva diya
बहुत शुक्रिया सर पर इस कॉमेंट के साथ आपका नाम और पता लग जाता तो बहुत खुशी होई...
DeleteWeldon Bhai keep it
ReplyDeleteUp
Thankyou
DeleteKedarkanth is amazing place. Your journey is beautiful. I hope you enjoy every moment in Kedarkantha. Me and my friend was gone one time in Kedarkantha. We are work in Towing Des Moines company.
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