रूक जाना नहीं तू कहीं हार के

उन्होंने फोन पर कहा था कि 
शाम होने से पहले अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच जाना। ये बिहार है साहब, कोई घटना हो जाये तो पुलिस 15-15 दिन तक घटना स्थल तक नहीं पहुंचती। 

शाम हो गई थी, हमे अगले पड़ाव पर पहुंचने के लिए अभी लगभग 150 किलोमीटर और चलना है। सूर्य देव भी पेड़ों के पीछे चुपके से डुबकी लगा रहे थे। कुछ ही पलों में अंधेरा हो गया था। 

कहने को ये नेशनल हाइवे है। लेकिन गड्ढे में हाइवे है या हाइवे में गड्ढे ये कहना मुश्किल। चल रहे थे पेट मजबूत करके धीरे-धीरे। बाइक की घड़ी बता रही थी कि 8 बज चुके है। पहुंचते पहुंचते लगभग 10 बज जाएंगे।

भूख भी बहुत ज़ोर की लगी है लेकिन इन सूनसान रास्तों पर कहाँ कुछ मिलने वाला है। अभी कुछ खाने-पीने का ख्याल मन मे चल ही रहा था कि सड़क के साइड में पार्टी हो रही थी।

बस फिर क्या था.? रूक गया...
आइये आइये भाई सहाब बैठिए
जी धन्यवाद.! पानी मिलेगा क्या.? हम दिल्ली से आये है, एक सरकारी प्रोजेक्ट के तहत। इस रास्ते पर तो कुछ मिल ही नहीं रहा। हमे बक्सर पहुँचना है। 
अरे अरे दिल्ली से बाइक पर.? छोटू जल्दी से एक गिलास पानी लेकर आ। 
जी हाँ काफी बड़ा प्रोजेक्ट है। कई छोटी-छोटी जगह कवर करनी है। सब जगह गाड़ी पर नहीं जाया जा सकता और सरकार ने बजट भी कम दिया है। तो चलें है बाइक पर...
बहुत हिम्मत की बात है साहब, भोजन करके आप यहीं ठहर जाइये। सुबह आगे बढिएगा...
वाह.! इन्होंने तो जैसे मन की बात कह दी हो....

मैने कहा 
जी बहुत आभार।  भोजन कर लेंगे, लेकिन रुकना थोड़ा मुश्किल होगा। हमे सुबह जल्दी शूट करके और आगे जाना है, नेपाल तक। 
जी, पर ये रास्ता अच्छा नहीं है। मैं आपको रात में आगे निकलने की सलाह नहीं दूँगा।

इतने में दुबे जी का फोन फिर बजने लगा। 
अरे कहाँ पहुंचे.? 

अभी कहाँ पहुंचे साहब। रूक गए भोजन करने एक दावत में, दस-सवा दस तक पहुँच जाएँगे। 

अब आप वहीं रुकने की व्यवस्था देखना ये रास्ता बहुत ही खराब है। डाकुओं का इलाका है। 

एक तो दुबे जी पहले से ही पीछे लगे थे, ऊपर से ये दावत वाले भी यहीं रोक रहे।
मुझे किसी भी हाल में आज बक्सर पहुँचना है। भोजन करके मैंने उनसे राम राम की, नम्बर का भी आदान-प्रदान किया। उन्होंने बड़े दिल से कहा, अगली बार जब आओ तो हमारे पास ज़रूर रुकियेगा। 

कितना अच्छा लगता है न.? थोड़ी सी बातचीत से इतना मजबूत दिल का रिश्ता बनना...

खैर अब देखना है कौन डाकू मेरी राह रोकेंगे.? वैसे मुझे लगता है कि मेरे हृदय में प्रेम इतना है कि मैं उन डाकुओं को भी दोस्त बना लूंगा। 
छोड़-छोड़ हितेश बाबू, डाकू दोस्त नहीं बनते। तुम्हारे पास बहुत महंगा कैमरा है, अगर कहीं डाकू मिल जाये तो चुपचाप देकर जान बचाकर निकल लेना। मन और मस्तिष्क का अंतर्द्वंद्व।

लेकिन कहते है न जब आपके इरादे अच्छे हों तो तमाम मुश्किलें भी आप सरलता से पार कर जाते है। रास्ते मे मुझे कोई डाकू नहीं मिला और मैं पहुँच गया रात ठीक 11:30 बजे बक्सर।
जून 2018




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