यात्रा में मिला प्यार

जीवन की यात्रा में जब मैं छोटे-छोटे गांव, शहरों कस्बों से गुज़रता हूँ तो ये एहसास मुझे गर्व महसूस कराता है भारतीय होने का। इस एहसास को सोचने मात्र से खुशी मिलती है कि मुझे इस पुण्य धरा पर जन्म मिला। सच कहूं तो ये एहसास मुझें जीना सिखाता है।
मैं उस दिन सुदूर हिमालय के किसी जंगल मे था। जहां अपने द्वारा ले जाये गए संसाधनों पर ही जिया जा सकता है। मुझे इस जंगल मे 3 से 4 दिन रहना है। मेरे पास खाने पीने का पर्याप्त सामान है। जंगल मे एंट्री करके अभी 3 से 4 किलोमीटर चला ही था कि एक छानी मिली जहां बहुत सारी भेड़ बकरियां थी और एक बूढ़ी अम्मा।
कहाँ जा रहे हो बेटा.?
अम्मा आगे जंगल मे जा रहा हूँ, 3-4 दिन रहूँगा प्रकृति की गोद मे।
आगे कोई दुकान या घर नहीं है खाओगे कहाँ और रहोगे कहाँ..?
अम्मा मेरे पास बनाने-खाने का सारा सामान है और रहने के लिए टेंट-स्लीपिंग बैग।
मैं चाय परांठे बना देती हूँ नाश्ता कर लो, तुम्हारे सामान की आगे बहुत जरूरत होगी।
मैं अम्मा के इस प्रेम से निःशब्द हो गया और धीमी सी आवाज में कहा 'ठीक है अम्मा' और बकरियों के साथ खेलने लगा...
अम्मा मेरी कोई रिश्तेदार नहीं है और न ही आपकी तरह फेसबुक, इंस्टाग्राम या किसी सोशल साइट पर जुड़ी दोस्त। लेकिन कुछ ही पलों की मुलाकात में ऐसा लगा जैसे अम्मा से मेरा कोई बरसों पुराना सम्बंध हो। आज के इस आपाधापी के युग मे कौन किसकी इतनीं परवाह करता है.?
अम्मा से मिले इस असीम प्रेम के बदले मेरे पास उन्हें देने के लिए प्रेम के सिवा कुछ न था। ये एहसास बहुत अनमोल है इसका कोई मूल्य लगाकर चुकाया नहीं जा सकता। वास्तव में इसका सार्थक भुगतान तो तब होगा जब हम इस प्रकार मिले प्रेम के बदले प्रेम दें। छल-कपट, अविश्वास और आपाधापी के युग मे मानवता का परिचय दें, सच्ची भारतीयता का परिचय दें।
अम्मा ने भेड़-बकरियां पालने के साथ-साथ यहां मूली, मटर और कई प्रकार सब्जियां भी उगा रखी है। जो इस राह से गुज़रे किसी भी राही का मन मोह ले। न जाने कितने ही लोग इस पथ से गुजरे होंगे.? न जाने कितने ही लोगों को अम्मा ने इसी तरह प्यार दिया होगा।
वास्तव में धन्य है ये अम्मा जो हमे रिश्ते और प्रेम का महत्व सिखाती है और ये बताती है कि जीवन कैसे जिया जाता है।
कुछ ही पलों में अम्मा नाश्ता बना लाई 4 परांठे कागज़ में लपेट कर पैक भी कर लाई।
अम्मा इतना प्रेम करोगी तो मैं 3 दिन तुम्हारे पास ही रह लूंगा..
रह ले बेटा, अपना ही समझ
मैं फिर निःशब्द हो गया और इस असीम वात्सल्य के बदले प्रेम देकर चल पड़ा अपनी मंज़िल की तरफ....
शब्दों का तराना सीख रहा हूँ
ज़िन्दगी जी पाना सीख रहा हूँ
बार बार मिलता हूँ ज़िंदगी से
मै बस आना जाना सीख रहा हूँ
नाग टिब्बा ट्रैक
जून 2017

अम्मा की छानी 

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