वैसे तो मेरा जन्म भी पुरानी दिल्ली के ऐतिहासिक क्षेत्र दरियागंज में हुआ। इस कारण से कई मित्रों का कहना था कि हितेश भाई आप हमें पुरानी दिल्ली के बारे में कुछ बताओ। बड़े चर्चे सुने है पुरानी दिल्ली की गलियों के, चांदनी चौक की गलियों में बड़ा इतिहास छुपा है। सुना है चटोरों की जान बस्ती है चांदनी चौक में। तो मैंने कहा यार जानकारी तो आजकल इंटरनेट पर ही मिल जाती है। फिर वह कहने लगे आप वहां के रहने वाले हैं आपसे जानकारी कुछ अलग ही मिलेगी तो उनके आग्रह पर पुरानी दिल्ली की गलियों की छोटी सी जानकारी आपके सामने है।
कहते हैं पहले दिल्ली केवल 6 गेटों में थी। दिल्ली गेट, तुर्कमान गेट, अजमेरी गेट, लाहौरी गेट, मोरी गेट, और कश्मीरी गेट। इन 6 गेटों में बसी दिल्ली को ही दिल्ली कहा जाता था बाकी सब आसपास जंगल हुआ करता था। लेकिन आज तो हम जानते हैं दिल्ली कितनी बड़ी हो गई है लेकिन इन 6 गेटों वाली दिल्ली को अब पुरानी दिल्ली कहा जाने लगा इसकी शुरुआत दिल्ली गेट से होती है। कहते हैं दिल्ली गेट दिल्ली में प्रवेश करने का मुख्य द्वार हुआ करता था।
दिल्ली गेट |
बाद में मुगलों द्वारा फिरोज शाह कोटला व खूनी दरवाजे का निर्माण करवाया गया। फिरोज शाह कोटला ऐसी जगह है जो हमारे देश के क्रांतिकारियों का केंद्र भी रही है। यहां किले के अवशेष और घूमने लायक मनमोहक बगीचा है।
फ़िरोज़शाह कोटला |
खूनी दरवाजा |
यहां से थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो हम राजघाट पहुंच जाते हैं जहां गांधी जी की समाधि है। फिर वापिस बाजार दिल्ली गेट से होते हुए हम पहुंचे हैं तिराहा बहरम खान इससे आगे बढ़ते हुए हम पहुंचते हैं चितली कबर, सस्ते कपड़े आदि लेने के लिए यह बाजार मशहूर है आप यहां रात के 2:30 3:00 बजे भी चहल-पहल देख सकते हैं। यहां से नजर उठा कर देखो तो सामने जामा मस्जिद नजर आती है।
राजघाट, गांधी समाधि |
जामा मस्जिद |
जामा मस्जिद से बांयी ओर चले तो हम पहुंचते हैं चावड़ी बाजार की गलियों में। यह संकरी गलियां काफी व्यस्त रहती है और यहाँ सैनेट्री का सामना थोक में मिलता है। यहां से सीधे चले जाओ तो चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन आ जाता है और बांयी और मुङो तो हम नई सड़क पहुंच जाते हैं। कहते हैं नई सड़क कागज की एशिया की सबसे बड़ी मार्केट मानी जाती है। यहां से सीधा चले तो सामने दिल्ली की शान टाउन हॉल दिखाई पड़ता है।
चावड़ी बाजार की गलियां |
टाउन हॉल |
अब हम चांदनी चौक में मैं प्रवेश कर चुके हैं। यहाँ सेंकडो गलियां है। जिनका नाम जिन्होंने बैठे तो बहुत समय लगेगा लेकिन फिर भी मैं आपको कुछ नाम बताता हूं जैसे दरीबा कला जो दिल्ली का सराफा बाजार माना जाता है। यहाँ कूंचा सेठ, गली पीपल वाली, धर्मपुरा हनुमान गली, माता गली, जोगीवाड़ा, मालीवाड़ा, गली गुलियांन, दुर्गा गली, कटरा नील, गली परांठे वाली छत्ता शाहजी आदि।
तो अभी हम टाउनहाल पर खड़े है सीधे हाथ की तरफ जाएँ तो हम पहुँचते है गुरुद्वारा शीश गंज। गुरूद्वारा शीश गंज साहिब, दिल्ली के नौ ऐतिहासिक गुरूद्वारों में से एक है। इस गुरूद्वारे का रोचक इतिहास है। यह गुरूद्वारा, सिक्खों के नौवें गुरू, गुरू तेग बहादुर सिंह की स्मृति में बनवाया गया था। इसी जगह गुरू तेग बहादुर को मौत की सजा दी गई थी, जब उन्होने मुगल बादशाह औरंगजेब के इस्लाम धर्म को अपनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था और इंकार कर दिया था।
शकों बाद, गुरू तेग बहादुर के कट्टर अनुयायी बाबा बघेल सिंह ने इस जगह को ढूंढ निकाला जहां गुरू जी को मौत की सजा मिली थी, और उन्होने गुरू जी के सम्मान में एक भव्य गुरूद्वारे का निर्माण करवा दिया।
गुरुद्वारा, शीश गंज |
गुरुद्वारे से आगे चले तो सीधे हाथ पर पड़ती है कैमरा मार्किट, साइकिल मार्किट और घडी मार्किट, बांयी हाथ पर पड़ता है भागीरथ पैलेस, यह मार्किट दवाई और बिजली के सामान की थोक मार्किट है। यहाँ सामान लेने पुरे देश से व्यापारी आते है। अब थोड़ा सा आगे और बड़े तो सीधे हाथ पर पड़ता है गौरी शंकर मंदिर। कहते है यह मंदिर 800 साल पुराना है इस मंदिर को कॉस्मिक पिलर या पूरे ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है। इस मंदिर को एक मराठा सैनिक आपा गंगाधर के द्वारा बनवाया गया था जो भगवान शिव का परम भक्त थे।
गौरी शंकर मंदिर नाम के अनुरूप भगवान शिव को समर्पित है और शैव के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। यहां एक शिवलिंग है जो चांदी से बने सांपों से घिरा हुआ है और एक लौकिक स्तंभ,ब्रह्मांड या जीवन के केंद्र का प्रतिनिधित्व करता है।
गौरी शंकर मंदिर |
चांदनी चौक का व्यस्त बाजार |
इसके साथ ही है जैन लाल मंदिर इसका निर्माण 1526 में हुआ था। वर्तमान में इसकी इमारत लाल पत्थरों की बनी है। इसलिए यह लाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां कई मंदिर हैं लेकिन सबसे प्रमुख मंदिर भगवान महावीर का है जो जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। यहां जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की प्रतिमा भी स्थापित है। जैन धर्म के अनुयायियों के बीच यह स्थान बहुत लोकप्रिय है। यहां का शांत वातावरण लोगों का अपनी ओर खींचता है।
मुगल साम्राज्य में मंदिरों के शिखर बनाने की अनुमति नहीं थी। इसलिए इस मंदिर का कोई औपचारिक शिखर नहीं था। बाद में स्वतंत्रता प्राप्ति उपरांत इस मंदिर का पुनरोद्धार हुआ।
जैन लाल मंदिर |
और यहाँ से सामने देखें तो नज़र आता है लाल किला इसके इतिहास में नहीं जाऊंगा आपको पता ही है सारा।
वापिस आयें तो टाउन हॉल से थोड़ा सा आगे बांयी हाथ पर है बल्ली मारन यह जूते, चप्पल की थोक मार्किट है यहाँ से आगे जाएँ तो नज़र आती है फतेहपुरी मस्जिद और यहाँ से सीधे चले जाओ तो खारी बावली होते हुए सादर पहुँच जाते है।
खड़ी बावली की एक दुकान |
फतेहपुरी मस्जिद |
लेकिन पुरानी दिल्ली का जिक्र हो और ऐतिहासिक दिल्ली के सबसे पुराने रेलवे स्टेशन का जिक्र ही न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। फतेहपुरी चौक से सीधे जाकर भाई मति दास चौक से बांयी मुड़े तो सामने नज़र आता है पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन। और उसके सामने है दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी।
दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी |
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन |
अगले भाग में जारी...
आगे के भाग में आपको बताएँगे चटोरे चांदनी चौक के बारे में तब तक आप कहीं मत जाइयेगा ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ, भारत के कोने-कोने में छुपे अनमोल ख़ज़ानों में से आपको रूबरू करवाते रहेंगे।
तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये।
आपका हमसफ़र आपका दोस्त
हितेश शर्मा
BAHUT HI ACCHI JANKARI DEE AAP NAY SATH ME PHOTO BHI BHUT ACCHA HAI.
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteपुरानी दिल्ली और चांदनी चौक के बारे में विस्तृत लेख के लिए धन्यवाद ...
ReplyDeleteबढ़िया चित्र और लेख...
धन्यवाद रितेश जी
Deleteइन गलियों में कभी घूम चुकी हूँ पर इतने रोचक ढंग से इतनी विस्तृत जानकारी पहली बार मिली ।
ReplyDeleteतस्वीरें भी बहुत सुंदर हैं ।
धन्यवाद जी पर अब आपको फिर आना होगा यहाँ घुमने अब पता लग गया इसलिए इस बार घूमने का अहसास बहुत अलग होगा।
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