केदारकंठा ट्रैक (दिल्ली से संकरी गांव)

अगर बात घूमने की हो तो कोई भी घूमने के लिए मना नहीं करेगा और हम तो बर्फ में घूमने की योजना बना रहे है जिसमे इतना मज़ा होगा कि शब्दों में पिरोना आसान काम नहीं है। वैसे तो 4 महीने पहले ऐसी योजना बनाई थी कि जनवरी 2017 में चादर ट्रैक करने लद्दाक जायेंगे। नितिन जी के साथ मिलकर ऐसी योजना भी बनाई। फिर तभी कुछ दिन बाद विकास जी अरे अपने दुर्ग वाले विकास जी जिनका कैमरे का काम है, उनका msg आया कि हितेश भाई मैं और मेरे 2 दोस्त संदीप और अनूप 4 जनवरी को दिल्ली आएंगे। 5 और 6 को फोटो फेयर है। फिर उसके बाद 7 जनवरी को कहीं घूमने चलेंगे। मैंने कहा ठीक है मैं योजना बना लेता हूँ। मैंने नितिन जी के साथ मिलकर योजना बनाई। जिसमे केदारकांठा और हर की दून जाने का है। ऐसी योजना बनाकर मैंने विकास जी को बता दी। लेकिन लगभग 24 दिसंबर को विकास जी ने बताया कि फोटो फेयर जो इस साल नॉएडा में होने वाला था वो कैंसिल हो गया, तो 4 को ही निकलना होगा केदारकांठा और हर की दून के लिए। खैर 28 दिसंबर को फिर विकास जी से बात हुई तो उन्होंने बताया कि 8 जनवरी को उन्हें मुम्बई जाना है फिर वहां से थाईलैंड की फ्लाइट है।
तो ऐसा तय हुआ विकास जी सिर्फ केदारकांठा जायेंगे हमारे साथ फिर वह वापिस दिल्ली आकर मुम्बई चले जायेंगे 7 जनवरी तक।

तो फिर नितिन जी का 2 जनवरी को फोन आया और उन्होंने कहा कि अपने विकास जी दिल्ली आने वाले थे। मैंने कहा कि 4 को आ रहे है। तो इस कार्यक्रम की योजना बनाने के लिए मैं नितिन जी के बैंक गया। वहां जाकर योजना बनाई कुछ सामान भी खरीदना था। तो इंदिरापुरम के डिकैथलोंन जाकर कुछ खरीदारी की विकास जी के लिए भी टेंट और स्लीपिंग बेग खरीद लिया।
अब अगले दिन 3 जनवरी को सुबह 10 बजे तत्काल में टिकट कराई दिल्ली से देहरादून की।

टिकट करा कर विकास जी को भी भेज दी तो विकास जी ने बताया अनूप जी तो जम्मू तवी से दिल्ली के लिए निकल पड़े। वो और उनके दोस्त संदीप जी कल सुबह की फ्लाइट से सीधे दिल्ली आएंगे। तो विकास जी का थोड़ी देर बाद फिर फोन आया तो उन्होंने बताया कि संदीप जी का आना कैंसिल हो गया। मुझे बड़ा दुःख लगा यह सुनकर बेचारों के फ्लाइट के पैसे भी ख़राब चले गए और यहां भी
ट्रेन का आरक्षण करवा दिया। खैर जो हुआ सो भगवान की मर्ज़ी।
अगला दिन हुआ तो ट्रेन का रनिंग स्टेटस चेक किया जिससे अपने अनूप जी आ रहे है। तो पता चला वह ट्रेन तो 5 घंटे की देरी से चल रही है। इस देरी के कारण यह तो पक्का हो गया अनूप जी देहरादून वाली ट्रेन के समय पर नहीं आ पाएंगे। बेचारों के 2 टिकट ख़राब हो गई बड़ा दुःख का विषय है। खैर
लगभग 1 बजे विकास जी से बात हुई वह दिल्ली आ चुके मैंने उनको सीधे नयी दिल्ली स्टेशन बुलवा लिया। तो लगभग 2 बजे मैं और प्रदीप नयी दिल्ली स्टेशन पहुँच गए। प्लेटफॉम नम्बर 5 पर विकास जी आसानी से मिल गए। फिर हम तीनो प्लेटफॉम नम्बर 11 पर आ गए, ट्रेन लगी हुई थी लेकिन गेट नहीं खुला था। थोड़ी देर बाद गेट खुला हम बैठे और कुछ ही पलों में ट्रेन चल दी। अगला स्टेशन ग़ाज़ियाबाद आया यहाँ से नितिन जी चढ़ गए। कुछ खाने पीने का सामान भी लाये थे।

विकास जी से बातें चल रही है। बातों बातों से पता चला कि विकास जी स्वभाव के बहुत संज्जन व्यक्ति है। हमेशा सबका भला चाहते है। ऐसे इंसान आज के समय में मिलना ऐसा लगता है जैसे रात को अँधेरे ने मोती ढूंढना। खैर विकास जी ने अनूप जी के बारे में बताया कि अनूप जी कभी अफसोस नहीं करते। यह बात जानकार बहुत अच्छा लगा। विकास जी ने बताया कि अनूप जी टिकट उलटी लेकर चल पड़े मतलब जो दिल्ली से दुर्ग वाली ट्रेन है 8 जनवरी को वो टिकट उनके पास है और जिस ट्रेन से वह आ रहे है उसकी टिकेट विकास जी के पास है। हाहाहा हंसी के ठहाके लगने लगे। हम रात में लगभग 10 बजे देहरादून पहुंचे। आशीष जी से पहले ही बात हो गई थी
उन्होंने अपने भाई के होटल में हमारे रुकने की सप्रेम बिना किसी शुल्क के बहुत उत्तम व्यवस्था की। उन्ही के होटल में हमने खाना और करीब 12 बजे तक सो गये।
और अनूप जी तो दिल्ली से 9:30 वाली बस से चल दिए सुबह 4 बजे तक आ पाएंगे। सब सो गए है मेरी आँख जल्दी खुल गई। ठीक 3:30 बजे और थोड़ी देर बाद अनूप जी भी आ गए। मैं तो फ्रेश होकर दुबारा सोने का प्रयास करने लगा लेकिन नींद नहीं आई खैर 6 बजे तक सबको उठाया और नहा धोकर सामने बस अड्डे पर आ गए और सांकरी जाने वाली बस में बैठ गए।

नींद भी बड़ी तेज आ रही थी। और ज्यादा समय तक आंख न खुल सकी बस विकास नगर के रास्ते अभी जमना पुल ही पहुंची है। यहाँ आकर थकान भी महसूस होने लगी। आखिर बस में बैठे बैठे थक जाता हूँ मैं। कुछ ही घंटे में हम पुरोला पहुँच गए। यहाँ सड़क थोड़ी ख़राब है उबड़ खाबड़ रास्ते से होते हुए बस डामटा पहुंची जहां हमने खाना खाया 80 रू में भरपेट खाना इतना खा लिया कि बस वाले को हमने बुलाने के लिए स्पेशल आना पड़ा खैर फर सीधे बस अब सांकरी जाकर रुकी। अच्छे से दिन छिपने को तैयार था। सांकरी पहुँचते ही हमने चाय पीयी उसके बाद वहीं हमने कमरा लिया जबरदस्त कमरा 5 बिस्तर के साथ। जब बिस्तर तैयार हो और थकावट ज्यादा हो तो नींद को रोक पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।

डामटा ढाबे से
वाह क्या नज़ारे
सांकरी गांव में ढाबा




आज के लिये इतना ही, अगले भाग में आपको केदारकांठा लेकर चलेंगे। तब तक आप कहीं मत जाइयेगा, ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ।
आपका हमसफ़र आपका दोस्त 
हितेश शर्मा








Comments

  1. बहुत सुंदर भाई
    अगले भाग का इंतजार रहेगा

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    1. धन्यवाद जी जल्द ही लिखता हूँ अगला भाग...

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  2. हितेश एक बेहतरीन यात्रा विवरण किया है तुमने, ऎसा लग रहा था, जैसे हम गये थे वही लिखा जा रहा है...

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  3. शानदार पोस्ट भाई जी

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  4. शानदार यात्रा वर्णन,चलो हम भी साथ चलते ह

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    1. बिल्कुल स्वागत है सर...

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