देवरिया ताल बाइक ट्रिप

लंबी जर्नी सोचने में कितना अच्छा लगता है.!!
अपने शहर से सैंकड़ो किलोमीटर दूर एकान्त में घूमने की बात सुनकर किसी के भी चहरे पर खुशी स्वाभाविक ही आ जाएगी।
सोचिये यदि आपको कहा जाए कि आपको बाइक से दिल्ली से सुदूर हिमालय के गाँव मे जाना है जो बेहद खूबसूरत है, जिसकी प्राकृतिक छटा इतनी अनुपम व मनमोहक है कि वहां से आपका लौटने का मन ही नहीं करेगा।

वहां के लोगों का रहन सहन और पारंपरिक सभ्यता इतनी रोचक व निराली है कि आप उसमें रच बस जाएंगे।
प्राकृतिक जलवायु तो इतनी शानदार है कि आप दिल्ली की उमसभरी गर्मी को भूल ही जायेंगे।
लेकिन क्या आप दिल्ली से बाइक से सैंकड़ो किलोमीटर दूर उस हिमालयी गांव में जाएंगे..?
मैं जानता हूँ आपका जवाब न में ही होगा....

तस्वीरों में देखने मे यह बेहद खूबसूरत हो सकता है। जिसको देखकर आप कह सकते है कि "यार ये है असली ज़िन्दगी", "जीना तो इसी को कहते है", "यार ज़िन्दगी हो तो इसकी तरह, वरना न हो"
तस्वीरों में देखकर इस प्रकार के अनेको ख्याल आपके मन मस्तिष्क में आ सकते है।
लेकिन दोस्त आप गलत है। और इसका जवाब आपकी न ने ही दिया है। यहां बाइक से जाना हंसी खेल नहीं है। और अगर आप जाते है तो यकीन मानिए आप सामान्य इंसान नहीं है। क्योंकि सामान्य इंसान की कल्पना से अभी ऐसी जगह बहुत दूर है।

मैं करीब रात 10:45 बजे दिल्ली से निकला था ऋषिकेश तक एकदम बेहतरीन हाईवे है। लेकिन उससे आगे मुझे 200 किलोमीटर और, सारी गांव तक जाना है।
समय रात्रि के चौथे पहर में विराजमान कर चुका था। करीब 4:00 बज रहे होंगे। एकदम गुप्प अंधेरा और पहाड़ी रास्ता वो भी एकदम सूनसान।

रात में हुई वीरान सड़क पर मैं अकेला अपनी बाइक के रूपहले पंख फैलाकर 40-50 की स्पीड में एकदम मस्तमौला चल रहा था।

दिल्ली से चले करीब 6 घण्टे हो गए होंगे। आलस्य और नींद दोनो मिलकर मुझपर हावी हो रहे थे और ये अंधेरा तो जैसे इनका साथ दे रहा था। सड़क पर कभी नींद में गाड़ी नहीं चलानी चाहिए। और मैंने भी वही किया। रोक दिया हवा में तैरती हुई बाइक को एक ढाबे के आगे।

-भैया एक कड़क चाय बनाओ

-जी भाई जी, कहाँ से आ रहे हो आप.? इतना सामान लादकर.!!

-दिल्ली से भाई जी।

-अरे दिल्ली से 😯

-हांजी दिल्ली से और अभी सारी गांव तक जाऊंगा।

-इतनी रात में आपको डर नहीं लगता.? यहां पूरे हाईवे पर काम भी चल रहा है। आज शाम ही एक दिल्ली की गाड़ी गंगा में गिरी है।

-नहीं भाई जी मेरे जुनून के आगे डर छोटा पड़ जाता है। मैं अक्सर पहाड़ों में रात में ही यात्रा करता हूँ। और दिन के मुकाबले मुझे रात ज्यादा सुरक्षित लगती है।

ढाबे वाल समझ गया था कि बंदा शौकीन है इसके पास मेरे हर सवाल का जवाब होगा तो वह शांत हो गया और गर्मागर्म चाय दी।

-आहा.! चाय एकदम मस्त बनाई है भाई जी। मज़ा आ गया...

-धन्यवाद भैया ध्यान से जाना। आपकी यात्रा मंगलमय हो।

मुझे इन यात्रओं से बहुत दोस्त मिलें है। हज़ारों लोगों से दोस्ती हुई है यूँही सड़क पर चलते-चलते। लोगों को लगता है मैं कुछ विशेष कर रहा हूँ लेकिन वास्तव में मैं कुछ विशेष नहीं कर रहा बस अपने शौक को पूरा कर रहा हूँ। मेरे लिए शौक बहुत बड़ी चीज़ है।

दिन निकल आया था चलते चलते 9 बज गए भूख लगी थी। लेकिन ये तय किया कि लगभग 1घण्टे बाद सारी पहुंचकर ही नाश्ता करूँगा। दोस्तों सफर में अगले पल हमें क्या देखने को मिलेगा कोई नहीं जानता। मेरे साथ भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ। उखीमठ से अभी 8 किलोमीटर आगे मस्तुरा पहुंचा था कि रास्ते मे भ्यंकय बर्फ पड़ी थी। और बर्फ में बाइक चलाना बेहद कठिन व खतरनाक होता है।

अभी 3.50 किलोमीटर ऐसे ही बर्फ में चलना है। मैं धीरे धीरे बाइक चला रहा है महज 10-12 की स्पीड पर लेकिन इतने में भी सारी तक 7-8 बार बाइक गिरी होगी।

चाहता तो बाइक मस्तुरा में ही खड़ी करके यहां पैदल ट्रैक करके आ सकता था। लेकिन ये कठिन परिस्थिति और बार-बार गिरना, और फिर उठकर चलना ये हमे मानसिक शक्ति प्रदान करता है। ये विषम परिस्थितियां हमे कठिन से भी कठिन स्थिति में भी सही निर्णय करने की क्षमता प्रदान करती है। जो हमे जीवन के किसी भी पड़ाव पर फेल नहीं होने देती।

मौसम बेहद ठण्डा था चारों तरफ बर्फ़बारी हो रही थी। सारी गांव में नेगी ढाबे पर बैठकर मैं आलू के परांठे व चाय का नाश्ता कर रहा था। जितनी देर में आलू के परांठे का भक्षण किया तब तक गर्म चाय कोल्डड्रिंक बन चुकी थी। मुझे ठंडी चाय बेहद बेकार लगती है इसलिए नहीं पीई।

अब अगला पड़ाव देवरियाताल है जो उत्तराखण्ड की सुंदरतम झीलों में से एक है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 2438 मीटर है। मुझे वहां तक लगभग साढ़े तीन किलोमीटर बर्फ में ट्रैक करके जाना है। दोस्तों जितना कठिन बिना बर्फ के पहाड़ पर चलना है उससे कई कठिन बर्फ पर चलना है।

एक-एक कदम सम्भल कर रखना। और जहाँ कोई चूक हुई तो भैया गए खाई में। दोस्तों ये बेशक मुश्किल है और हो सकता है कईं लोगों के लिए नमुमकिन हो लेकिन ये पहाड़ हमे जीना सीखाते है, प्रेम करना सीखाते है। दूसरे की समस्या को समझना सिखाते है। हमारे भीतर गंभीरता उत्पन्न करते है। इसी के साथ हम ट्रैकिंग करके हम अपना स्वाथ्य भी ठीक रख सकते है।

यकीन साल में 4-5 ट्रैक करेंगे तो मोटापा भी आपसे कोसो दूर रहेगा।
वैसे तो इस ट्रैक पर बहुत सारे ट्रैकर्स हमे देखने को मिल जाते है लेकिन आज बर्फ़बारी ज्यादा होने के कारण से मुझे कोई भी यात्री नहीं दिख रहा था।

लगता है आज झील किनारे टैंट लगाकर अकेले ही रूकना पड़ेगा। ये विचार मन मे चल ही रहा था कि आधे रास्ते मे आये ओमकार रत्नेश्वर महादेव मंदिर पर 10-12 अंग्रेजों का जत्था खड़ा था। सभी अपने अपने टेंट लेकर आये थे।

ये अंग्रेज हमारा सारा हिमालय चाट गए लेकिन हम भारतीयों को इसके बारे में कुछ पता ही नहीं। हिमालय में अनेकों रहस्य छिपे है, अनेकों प्रकार की जड़ी बूटी, खनिज अभी भी रहस्य है।

मंदिर के प्रांगण में चबूतरे से बर्फ हटा रहे पुजारी जी को मैंने प्रणाम कहा।
-पुजारी जी इस देवरिया ताल का क्या इतिहास है..?

-बेटा ये ताल बहुत प्राचीन है। कहते है इस झील में देवता स्नान किया करते थे और इसको पुराणों में इंद्र सरोवर के नाम से उल्लेखित किया गया है।

-मैंने सुना है इस झील का सम्बंध पांडवों से भी है। इसकी पूरी कहानी क्या है..?

-बेटा ऋषि-मुनियों का मानना है ‘यक्ष’ जिसने पांडवों से उनके वनवासकाल के दौरान सवाल किए थे और जो पृथ्वी में छुपे हुए प्राकृतिक खजानों और वृक्षों की जड़ों का रखवाला था, वह इसी झील में रहता था।

-इतना प्राचीन इतिहास और धार्मिक मान्यता भी फिर तो यहां कोई मेला भी लगता होगा.?

-हां यहां जन्माष्टमी पर मेला लगता है। उसका कारण ये है कि जो भक्तगण यहां सच्चे मन से आते थे उन्हें नागदेवता के दर्शन हुआ करते थे। इसलिए प्राचीन परंपरा के अनुसार यहां हर जन्माष्टमी के दिन मेला लगता है।

-वाह ये तो बहुत रोचक जानकारी है। बहुत धन्यवाद पंडित जी आपका।

-अच्छा बेटा चाय पीलो....

-हां पंडित जी आधा कप चाय बनवा दीजिये अभी नीचे तो बिल्कुल ठण्डी हो गई थी पीने में मज़ा ही नहीं आया तो छोड़ दी।

-कोई न.! आप कहाँ से आ रहे हो.?

-जी दिल्ली से...

-इन दिनों यात्री कम आ रहे है। पिछले सप्ताह एक तेंदुआ भी गांव वालों को देखने को मिला थोड़ा ध्यान रखना।

-जी पंडित जी मैं ध्यान रखूंगा वैसे महाकाल की इस भूमि में क्या बिगाड़ सकेगा काल.?

-हाहाहा बेटा जब किस्मत खराब होती है तब कुछ भी घटित हो जाता है।

-जी सही कहा आपने।

मेरी चाय खत्म हो चुकी थी। मैंने पंडित जी के चरण स्पर्श करके विदा ली। बर्फबारी भी रूक गई थी। अंग्रेजों का जत्था भी जा चुका था। मैं फिर ट्रैक पर अकेला था।

अकेले में ऐसी राहों पर अक्सर बुरे ख्याल आना स्वाभाविक है लेकिन मानिए मैं इन सबसे बहुत दूर था और लगातार बढ़े जा रहा था अपनी मंज़िल की तरफ।

लगभग 4 बजे मैं देवरियाताल पहुंच गया। आकर टैंट खोला और थोड़ा आराम किया इतनी देर में शाम हो चुकी थी सूर्य देव शांत होने जा रहे थे। चौखम्बा की हिममंडित चोटी स्वर्णिम आभा लिए ऐसी लग रही थी मानो सूर्यदेव चौखंबा में ही समा गए हों। यह मंज़र इतना खूबसूरत था कि मैंने सूर्यदेव से कहा कि थम जाओ कुछ देर के लिए। मैं यूँ ही तुम्हे निहारना चाहता हूँ।

लेकिन मेरी कहाँ चलने वाली थी लगा गए डुबकी भवसागर में। इतने में रात हो चुकी थी, तापमान भी लगातार गिर रहा था। पास ही एक छोटी सी दुकान पर दाल चावल खाये और वहीं आग में हाथ सेकने लगा।
कब रात के 9 बज गए पता ही नहीं चला। अब मैं अपने टेंट के बाहर था। आसमान की तरफ नज़र पड़ी तो नज़ारा देखने लायक था। चारों तरफ तारे ही तारे और उनकी जगमगाहट ऐसी थी कि ऐसा लगा जैसे मैं न जाने किस दुनिया मे आ गया हूँ। दर्शय की व्याख्या शब्दों में करना बहुत मुश्किल है ऐसे मंज़र को सिर्फ जिया ही जा सकता है।

मैं यहाँ आकर सब कुछ भूल गया था। मेरा घर कहाँ है.? मेरा क्या अस्त्तिव है.? मैं किस दुनिया से आया हूँ.? मेरी क्या पहचान है.? मुझे कुछ मालूम नहीं था। दो दिन में मैं इस विरली दुनिया मे कहीं खो गया था।
शायद इसी दुनिया का हो गया था।
दो दिन बाद मेरा शरीर तो दिल्ली आ गया था लेकिन मेरा दिल वहीं छूट गया था उसी झील में जिसमे गंगोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और नीलकंठ की चोटियों के साथ चौखम्बा की श्रेणियों के स्पस्ट प्रतिबिम्ब दिखते है।


कब और कैसे पहुंचे:-
मार्च स दिसम्बर तक यहाँ आया जा सकता है हालांकि आ तो कभी भी सकते है लेकिन बर्फ ज्यादा होने के कारण मार्ग बंद हो जाता है जिस कारण से पैदल यात्रा ज्यादा बढ़ जाती है।

यहाँ पहुंचने के दो रास्ते है:-
पहला: ऋषिकेश से गोपेश्वर 212 किलोमीटर और गोपेश्वर से सारी 45 किलोमीटर
दूसरा ऋषिकेश से ऊखीमठ 183 किलोमीटर और ऊखीमठ से सारी 12 किलोमीटर
ऋषिकेश से गोपेश्वर के लिए बस सेवा नियमित उपलब्ध है और इससे आगे बस व शेयरिंग जीप व पर्सनल टेक्सी करके जाया जा सकता है।
नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार है जो देश के सभी हिस्सों से जुड़ा है।
नजदीकी एयरपोर्ट जोली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून है।








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